ब्रज-वैभव

ब्रज कला एवं संस्कृति

ब्रज-संस्कृति का अविभाज्य अंग-संगीत

संगीत को समर्पित ग्वारिया बाबा


ग्वारिया बाबा हमारे संगीत- गुरु थे। हारमोनियम की लकड़ी की डमी पर वह संगीत के विद्यार्थियों को शिक्षा दिया करते थे। संगीत- शास्र में वह "ब्रह्म संहिता' के पक्षधर थे। दतिया नरेश के राज दरबार में इन्होंने अपने गायन- वादन पर एक हाथी को नचाया था। वह कृष्ण को अपना सखा मानते थे और उसके नाम पर छपा- छपाकर नोटिस निकाला करते थे। विद्यालयों में संगीत की शिक्षा नि:शुल्क दिया करते थे। उनके पास विविध प्रकार के अनेक वाद्य- यंत्र थे। मृत्यु से पूर्व वह उन्हें अपने शिष्यों में बाँट गए। मथुरा- वृंदावन के गली- बाजारों में विद्यार्थियों को एकत्र कर के उन्हें गवाते थे। गायन समाप्त होने पर बालकों की इच्छानुसार उन्हें मिठाईयाँ खिलाया करते थे। एक फटी- लटी गूदड़ी ही उनका परिधान था। उसी को पहनते और ओढ़ कर सो जाते थे। अच्छे संगीतज्ञों, संगीत- शिक्षकों और विद्यार्थियों को बड़ी उदारता से नए- नए नोट बांटा करते थे। मैं ओर स्वर्गीय मूंगाजी इसकी खोज में थे कि एक रुपया उनके पास आता कहाँ से हैं ? क्योंकि कुछ लोग उन्हें अंग्रेजों का जासूस कहने लगे थे।

एक दिन हमने उन्हें एक रसायन सिद्ध करते हुए चुपके से देख लिया। यह कुछ नहीं सोना था। जितनी आवश्यकता होती थी उतना सोना बनाते थे और उसे बेच कर संगीत पर लुटा दिया करते थे। स्वर्गीय मूँगाजी उनके प शिष्य थे। मुझे भी उनकी थोड़ी सी कृपा प्राप्त हुई थी। संगीत और नृत्य का आरंभिक ज्ञान मुझे ग्वारिया बाबा से ही प्राप्त हुआ। उन्होंने मथुरा की वल्लभ सखाजी की सुप्रसिद्ध होली में कृष्ण बना कर मुझे पहली बार नचाया था। हारमोनियम, तबला और बेला के प्रारंभिक पाठ मैंने बाबा से ही सीखे। लेकिन स्वर्ण बनाने की विधि उन्होंने अपने किसी भी शिष्य को नहीं बताई। वह विधि उनके साथ ही चली गई।

अब हमारे गुरुभाई और संगीत शिक्षक रामचंद्र मूँगाजी भी पिछले दिनों स्वर्गवासी हो गए। 
ग्वारिया बाबा के ऊपर कुछ छोटी- छोटी पुस्तकें उन्होंने निकाली थीं। बाबा का "संगीत- गणित' ज्ञान तो उन्होंने लिपिबद्ध किया था, पर "ब्रह्म संहिता' शायद उनके भी पास नहीं थी।

-- व्यास

संदर्भ :- 
१. गोपाल प्रसाद व्यास, ब्रज विभव, दिल्ली १९८७ ई. पृ. ५२४- ५२९

 

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