ब्रज-वैभव

ब्रज कला एवं संस्कृति

भारतीय संगीत को ब्रज की देन

संगीत का दरबारों में प्रवेश


इस प्रकार वैदिक संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश भाष्ज्ञा साहित्यों में नाना रुपों में बनता तथा भरत, दत्तिल, मतंग, नारद और सोमेश्वर आदि संगीत आचार्यों द्वारा विविधविध संवरता संगीत एक ओर से गोविंदकार जयदेव के हरिस्मरण के रंग में रंगकर विद्यापति के "देसिल बयना सब जन मिट्ठा' रुप स्वरों में मिथिला की अमराइयों में खेलता- कूदता मध्यकालीन भक्ति आंदोलन में आकर...... तथा दूसरी ओर से उदयन, बिंबसार, समुद्रगुप्त, चंद्रगुप्त, हर्षवर्धन आदि के राजदरबारों में फलता- फूलता अलाउद्दीन खिलजी और बाद में मुगल बादशाहों के दरबार में आकर ब्रजी काव्य के संयोग से पल- पल उजला बना। ब्रजी काव्य और संगीत के ऐश्वर्य- माधुर्य जैसे मणिकांचन सामंजस्य की कांति के वर्णन के लिए "गिरा अनैन नैन बिनु बानी' के कारण कुछ कहते नहीं बनता। हाँ, भावपक्ष में जहाँ ब्रजी काव्य और संगीत भक्तिमार्ग की महिमामयी गोद में फलफूल कर प्रेम की स्नेहमयी अमृत- संजीवनी पाकर अमर बने, वहीं दूसरी ओर राजदरबारों ने भी ब्रजी काव्य और संगीत का "पलकन सों मग झारते' हुए स्वागत कर गले लगाया, जिसकी अधूरी कहानी आगे हैं।

 

 

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