ब्रज-वैभव

ब्रजभाषा एवं साहित्य

वार्ता साहित्य और अष्टछाप


हमारे साहित्य में अष्टछाप का इतना महत्व होते हुए भी, उसके कवियों का जीवन- वृत्तांत अभी तक पूर्णतया ज्ञात नहीं है। अष्टछाप के कवियों ने अपने विषय में प्रायः कुछ भी नहीं लिखा है, अतः उनकी रचनाओं द्वारा उनके जीवन- वृत्तांत प्राप्त होने की आशा प्रायः नहीं है। उनकी रचनाओं में अंतःसाक्ष्य और सम सामयिक एवं परवर्ती रचयिताओं -- नाभादास तथा प्रियादास आदि -- की रचनाओं के आधार पर जो बातें प्राप्त होती हैं, वे अत्यंत अपूर्ण होने के साथ विवादग्रस्त भी है। केवल पुष्टि संप्रदाय का वार्ता साहित्य ही ऐसा आधार है, जिससे हमको अष्टछाप का सुविस्तृत जीवन- वृत्तांत ज्ञात होता है। वार्ताओं में उनका जो वृत्तांत दिया गया है, वह सांप्रदायिक सेवक और अनन्य भक्त के रुप में हैं, वह भी सांप्रदायिक दृष्टिकोण के कारण इस तरह लिखा गया है कि उसकी बहुत- सी बातें आजकल के पाठकों को संदिग्ध और अविश्वसनीय- सी ज्ञात होती हैं। जन्म, मृत्यु एवं जीवन- घटनाओं के कालक्रम तथा संवत- तिथि आदि का उनमें नितांत अभाव है।

आजकल के पाठकों के लिए वार्ता साहित्य की सबसे बड़ी कमी यह मालूम होती है कि उससे अष्टछाप के साहित्यिक महत्व पर कुछ भी प्रकाश नहीं पड़ता। वास्तविक बात तो यह है कि अष्टछाप में सम्मिलित होने पर भी उन दिनों इन महात्माओं का जितना महत्व सांप्रदायिक भक्त होने के कारण था, उतना उनके साहित्यकार होने के कारण नहीं। आज हम लोगों का दृष्टिकोण दूसरा है। हमलोग अष्टछाप के महत्व का साहित्यिक दृष्टि से मूल्यांकन करते हैं और जब वार्ता साहित्य इस संबंध में मौन दिखलाई देता है, तो हमको उससे बड़ी निराशा होती है।

यह सब होने पर भी अष्टछाप के जीवन- वृत्तांत के संबंध में हमारी जो कुछ भी जानकारी है, वह विशेष रुप से वार्ता साहित्य पर ही आधारित है, बल्कि यह कहना चाहिए कि अष्टछाप की जीवनी का मूल आधार पुष्टि संप्रदाय का वार्ता साहित्य ही है।



अष्टछाप संबंधी वार्ताएँ

पुष्टि संप्रदाय के वार्ता साहित्य में ""चौरासी वैष्णवन की वार्ता'' ""दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता'' और ""अष्ट सखान की वार्ता'' ऐसी रचनाएँ हैं, जिनमें अष्टछाप संबंधी वार्ताएँ दी हुई हैं। वैसे अन्य वार्तापुस्तकों में भी प्रसंगवश अष्टछाप के महानुभावों का कहीं- कहीं उल्लेख आ गया है, किंतु उपर्युक्त पुस्तकों में उनकी जीवन- घटनाएँ विशेष रुप से दी हुई है।

""चौरासी वैष्णवन की वार्ता'' में महाप्रभु बल्लभाचार्य के शिष्यों की कथाओं को संकलित किया गया है। उनमें अंतिम चार वार्ताएँ अष्टछाप से संबंधित हैं। इस पुस्तक की वार्ता संख्या ८१ में सूरदास, सं.८२ में परमानंददास, सं. ८३ में कुंभनदास और सं. ८४ में कृष्णदास की जीवन- कथाएँ दी गई है १ ।

""दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता'' में गो. विट्ठलनाथ के शिष्यों की कथाओं को संकलित किया गया है। इनमें आरंभ की चार वार्ताएँ अष्टछाप से संबंधित हैं। इस पुस्तक की वार्ता सं. १ में गोविंद स्वामी, सं. २ में छीतस्वामी, सं. ३ में चतुर्भुजदास और सं. ४ में नंददास की जीवन- कथाएँ दी गई हैं २ ।

""अष्टसखान की वार्ता'' में उपर्युक्त आठ वार्ताएँ पृथक रुप से संकलित की गई हैं। इस पुस्तक की वार्ताओं का निम्न क्रम है ३ ।

१. सूरदास,
२. परमानंददास,
३. कुंभनदास,
४. कृष्णदास,
५. छीत स्वामी,
६. गोविंदस्वामी,
७. चतुर्भुजदास,
८. नंददास।

उपर्युक्त क्रम से ज्ञात होगा कि वह प्रायः चौरासी और दो सौ बावन वार्ताओं के जैसा ही है, अंतर केवल इतना है कि दो सौ बावन वार्ता में गोविंद स्वामी की वार्ता छीत स्वामी की वार्ता से पहले दी हुई है, जबकि "अष्टखान की वार्ता'' में छीतस्वामी की वार्ता पहले और गोविंदस्वामी की वार्ता बाद में दी गई है।

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वार्ताओं का महत्व और उनका अध्ययन

उपर्युक्त वार्ता पुस्तकें ब्रजभाषा साहित्य के प्राचीन महाकवियों के जीवन वृत्तांत प्रकट करने के कारण तो महत्वपूर्ण हैं ही, किंतु उनका महत्व इसलिए और भी अधिक है कि वे ब्रजभाषा की आरंभिक गद्य रचनाएँ हैं। यदि ये पुस्तकें प्रामाणित हैं, तो इनसे सत्रहवीं शताब्दी के ब्रजभाषा गद्य का रुप ज्ञात हो सकता है। इन पुस्तकों में दी हुई वार्ताओं में उस समय की धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक स्थिति पर भी बड़ा महत्वपूर्ण प्रकाश पड़ता है, इसलिए उनका ऐतिहासिक महत्व भी कुछ कम नहीं है।

वार्ताओं के उपर्युक्त महत्व के कारण ही उनका प्रचार पुष्टि संप्रदाय के भक्तों तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि अन्य संप्रदाय के साहित्यिक विद्वान भी उनके अध्ययन की आवश्यकता समझने लगे। इस आवश्यकता की पूर्ति में वार्ताओं के सुसंपादित संस्करणों का अभाव सबसे बड़ी बाधा थी, अतः विद्वानों का ध्यान इस ओर विशेष रुप से आकर्षित हुआ। वार्ता साहित्य के अध्ययन और उसके संपादन के सिलसिले में विद्वानों को उसकी प्रामाणिकता के संबंध में कई प्रकार की शंकाएँ हुई। सबसे बड़ी शंका तो वार्ताओं के रचयिता के संबंध में ही हुई। इन शंकाओं पर पक्ष एवं विपक्ष से यथेष्ट वाद- विवाद हो चुका है।

 

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