ब्रज-वैभव

ब्रज का भौगोलिक वर्णन

ब्रज के बन


ब्रज सदा से अपने सुन्दर और सुविशाल बनों के लिये प्रसिद्ध रहा है। पुराण आदि संस्कृत ग्रन्थों में उनके नाम और विवरण मिलते हैं। उक्त ग्रन्थों में ब्रज के १२ बन २४ उपबन तथा वहुसंख्यक अन्य प्रकार के बनों का विशद वर्णन हुआ है। विविध पुराणों में इनके नाम और संख्या के संबंध में कुछ मतभेद भी हैं, किन्तु पद्म पुराण में उल्लखित नाम और संख्या अधिक प्रचलित है। ब्रज की समस्त महत्वपूर्ण वस्तुओं का नामोल्लेख करने वाले कवि जगतनंद ने भी इन्हीं नामों को स्वीकार किया है। १ यहां पर ब्रज के उन बन और उपबनों का वर्णन किया जाता है -

ब्रज के सुप्रसिद्ध १२ बनों के नाम 

(१) मधुबन, (२) तालबन, (३) कुमुदबन, (४) बहुलाबन, (५) कामबन, (६) खिदिरबन, (७) वृन्दाबन, (८) भद्रबन, (९) भांडीरबन, (१०) बेलबन, (११) लोहबन और (१२) महाबन हैं। 

इनमें से आरंभ के ७ बन यमुना नदी के पश्चिम में हैं और अन्त के ५ बन उसके पूर्व में हैं। इनका संक्षिप्त वृतांत इस प्रकार है -


१. मधुबन - यह ब्रज का सर्वाधिक प्राचीन वनखंड है। इसका नामोल्लेख प्रगैतिहासिक काल से ही मिलता है। राजकुमार ध्रुव इसी बन में तपस्या की थी। सत्रत्रुध्न ने यहां के अत्याचारी राजा लवणासुर को मारकर इसी बन के एक भाग में मथुरा पुरी की स्थापना की थी। वर्तमान काल में उक्त विशाल बन के स्थान पर एक छोटी सी कदमखंडी शेष रह गई है और प्राचीन मथुरा के स्थान पर महोली नामक ब्रज ग्राम बसा हुआ है, जो कि मथुरा तहसील में पड़ता है। 

२. ताल बन - प्राचीन काल में यह ताल के बृक्षों का यह एक बड़ा बन था और इसमें जंगली गधों का बड़ा उपद्रव रहता था। भागवत में वर्णित है, बलराम ने उन गधों का संहार कर उनके उत्पात को शांत किया था। कालान्तर में उक्त बन उजड़ गया और शताब्दियों के पश्चात् वहां तारसी नामक एक गाँव बस गया, जो इस समय मथुरा तहसील के अंतर्गत है।

३. कुमुद बन - प्राचीन काल में इस बन में कुमुद पुष्पों की बहुलता थी, जिसके कारण इस बन का नाम 'कुमुद बन' पड़ गया था। वर्तमान काल में इसके समीप एक पुरानी कदमखड़ी है, जो इस बन की प्राचीन पुष्प-समृद्धि का स्मरण दिलाती है।

४. बहुलाबन - इस बन का नामकरण यहाँ की एक बहुला गाय के नाम पर हुआ है। इस गाय की कथा 'पदम पुराण' में मिलती है। वर्तमान काल में इस स्थान पर झाड़ियों से घिरी हुई एक कदम खंड़ी है, जो यहां के प्राचीन बन-वैभव की सूचक है। इस बन का अधिकांश भाग कट चुका है और आजकल यहां बाटी नामक ग्राम बसा हुआ है।

५. कामबन - यह ब्रज का अत्यन्त प्राचीन और रमणीक बन था, जो पुरातन वृन्दाबन का एक भाग था। कालांतर में वहां बस्ती बस गई थी। इस समय यह राजस्थान के भरतपुर जिला की ड़ीग तहसील का एक बड़ा कस्बा है। इसके पथरीले भाग में दो 'चरण पहाड़िया' हैं, जो धार्मिक स्थली मानी जाती हैं। 

६. खिदिरबन - यह प्राचीन बन भी अब समाप्त हो चुका है और इसके स्थान पर अब खाचरा नामक ग्राम बसा हुआ है। यहां पर एक पक्का कुंड और एक मंदिर है।

७. वृन्दाबन - प्राचीन काल में यह एक विस्तृत बन था, जो अपने प्रकृतिक सौंदर्य और रमणीक बनश्री के लिये विख्यात था। जब मथुरा के अत्याचारी राजा कंस के आतंक से नंद आदि गोपों को वृद्धबन (महाबन) स्थित गोप-बस्ती (गोकुल) में रहना असंभव हो गया, तब वे सामुहिक रुप से वहां से हटकर अपने गो-समूह के साथ वृन्दाबन में जा कर रहे थे। भागवत् आदि पुराणों से और उनके आधार पर सूरदास आदि ब्रज-भाषा कावियों की रचनाओं से ज्ञात होता है कि उस वृन्दाबन में गोबर्धन पहाड़ी थी और उसके निकट ही यमुना प्रवाहित होती थी। यमुना के तटवर्ती सघन कुंजों और विस्तृत चारागाहों में तथा हरी-भरी गोबर्धन पहाड़ी पर वे अपनी गायें चराया करते थे। २

वह वृन्दाबन पंचयोज अर्थात बीस कोस परधि का तथा ॠषि मुनियों के आश्रमों से युक्त और सघन सुविशाल बन था। ३ वहाँ गोप समाज के सुरक्षित रुप से निवास करने की तथा उनकी गायों के लिये चारे घास की पर्याप्त सुविधा थी। ४ उस बन में गोपों ने दूर-दूर तक अने बस्तियाँ बसाई थीं। उस काल का वृन्दाबन गोबर्धन-राधाकुंड से लेकर नंदगाँव-वरसाना और कामबन तक विस्तृत था। 

संस्कृत साहित्य में प्राचीन वृंदाबन के पर्याप्त उल्लेख मिलते हैं, जिसमें उसके धार्मिक महत्व के साथ ही साथ उसकी प्राकृतिक शोभा का भी वर्णन किया गया है। महाकवि कालिदास ने उसके वन-वैभव और वहाँ के सुन्दर फूलों से लदे लता-वृक्षों की प्रशंसा की है। उन्होंने वृन्दाबन को कुबेर के चैत्ररथ नामक दिव्य उद्यान के सदृश वतलाया है। ५

वृन्दाबन का महत्व सदा से श्रीकृष्ण के प्रमुख लीला स्थल तथा ब्रज के रमणीक बन और एकान्त तपोभूमि होने के कारण रहा है। मुसलमानी शासन के समय प्राचीन काल का वह सुरम्य वृन्दाबन उपेक्षित और अरक्षित होकर एक बीहड़ बन हो गया था। पुराणों में वर्णित श्रीकृष्ण-लीला के विविध स्थल उस विशाल बन में कहाँ थे, इसका ज्ञान बहुत कम था । जव वैष्णव सम्प्रदायों द्वारा राधा-कृष्णोपासना का प्रचार हुआ, तब उनके अनुयायी भक्तों का ध्यान वृन्दाबन और उसके लीला स्थलों की महत्व-वृद्धि की ओर गया था। वे लोग भारत के विविध भागों से वहाँ आने लगे और शनै: शनै: वहाँ स्थाई रुप से बसने लगे।

इस प्रकार वृन्दाबन का वह बीहड़ वन्य प्रदेश एक नागरिक बस्ती के रुप में परणित होने लगा । वहाँ अनेक मन्दिर-देवालय वनाये जाने लगे। बन को साफ कर वहाँ गली-मुहल्लों और भवनों का निर्माण प्रारम्भ हुआ तथा हजारों व्यक्ति वहाँ निवास करने लगे। इससे वृन्दाबन का धार्मिक महत्व तो बढ़ गया, किन्तु उसका प्राचीन वन-वैभव लुप्त प्रायः हो गया।

उपर्युक्त सातों बन यमुना नदी की दाहिनी ओर अर्थात पश्चिम दिशा में हैं। निम्न पाँच बन यमुना की बायी ओर अर्थात पूर्व दिशा में स्थित हैं


८. भद्रबन, ९. भांडीरबन, १०. बेलबन - ये तीनों बन यमुना की बांयी ओर ब्रज की उत्तरी सीमा से लेकर वर्तमान वृन्दाबन के सामने तक थे। वर्तमान काल में उनका अधिकांश भाग कट गया है और वहाँ पर छोटे-बड़े गाँव बस गये हैं। उन गाँवों में टप्पल, खैर, बाजना, नौहझील, सुरीर, भाँट पानी गाँव उल्लेखनीय हैं। 

११. लोहबन - यह प्राचीन बन वर्तमान मथुरा नगर के सामने यमुना के उस पार था। वर्तमान काल में वहाँ इसी नाम का एक गाँव बसा है। 

१२. महाबन - प्राचीन काल में यह एक विशाल सघन बन था, जो वर्तमान मथुरा के सामने यमुना के उस पार वाले दुर्वासा आश्रम से लेकर सुदूर दक्षिण तक विस्तृत था। पुराणों में इसका उल्लेख बृहद्बन, महाबन, नंदकानन, गोकुल, गौब्रज आदि नामों से हुआ है। उस बन में नंद आदि गोपों का निवास था, जो अपने परिवार के साथ अपनी गायों को चराते हुए विचरण किया करते थे। उसी बन की एक गोप बस्ती (गोकुल) में कंस के भय से बालक कृष्ण को छिपाया गया था। श्रीकृष्ण के शैशव-काल की पुराण प्रसिद्ध घटनाएँ - पूतना बध, तृणवर्त बध, शंकट भंजन, चमलार्जुन पतन आदि इसी बन के किसी भाग में हुई थीं। 
वर्तमान काल में इस बन का अधिकांश भाग कट गया है और वहाँ छोटे-बड़े कई गाँव वस गये हैं। उन गावों में बलदेव, महाबन, गोकुल और रावल के नाम से उल्लेखनीय है

 

ब्रज के २४ उपबन

ब्रज के पुराण प्रसिद्ध २४ उपबनों के नाम कवि जगतनंद ने इस प्रकार लिखे हैं - 

(१) अराट (अरिष्टबन), (२) सतोहा (शांतनुकुंड), (३) गोबर्धन, (४) बरसाना, (५) परमदरा, (६) नंदगाँव, (७) संकेत, (८) मानसरोवर, (९) शेषशायी, (१०) बेलबन, (११) गोकुल, (१२) गोपालपुर, (१३) परासोली, (१४) आन्यौर, (१५) आदिबदरी, (१६) विलासगढ़, (१७) पिसायौ, (१८) अंजनखोर, (१९) करहला, (२०) कोकिला बन, (२१) दघिबन (दहगाँव), (२२) रावल, (२३) बच्छबन, और (२४) कौरबबन। ६


ब्रज के अन्य बन

उक्त १२ बन और २४ उप-बनों के अतिरिक्त श्री नारायणभटट जी ने बाराह पुराण के आधार पर १२ प्रतिबन और १२ तपोबन तथा विष्णु पुराण के आधार पर १२ अधिबन के नाम उल्लिखित है। ७ इनके अतिरिक्त आदि पुराण में १२ मोक्ष बन, भविष्य पुराण में १२ काम बन, स्कंद पुराण में १२ अर्थ बन, स्मृति सार में १२ धर्म बन और विष्णु पुराण में १२ सिद्ध बन के नाम लिखे हैं। ८ श्री नारायण भटट जी ने उन समस्त बनों के अधिपतिदेवताओं का नामोल्लेख करते हुए उनके ध्यान मत्र भी उल्लखित हैं। भटट जी के मतानुसार इन समस्त बनों में से ९२ यमुना नदी के दाहिने ओर तथा ४२ बांयी ओर हैं। ९ 


१. ब्रज बस्तु वर्णन (जगतनंद)
२. वृंदावन गोबर्धन यमुना पुलिनानि च।
वीक्ष्यासीदुत्तमा प्रीती राममाधवयेर्नृप।। (भागवत दशम, स्कंध)
अहो वृंदाबनं रम्यं यत्र गोबर्धनो गिरि:। (स्कन्द पुराण)
जमुना उतर आय वृन्दाबन, जहाँ सुखद द्रुमराजे।
गोबर्धन-वृंदाबन-जमुना, सघन कुंज अति छाजें।।
अचल राज गोबर्धन मेरौ, वृंदाविपिन मँझार।। (सूरसागर)
३. पंच योजनमेवास्ति वनं मे देहरुपकम। (वृहद गोमती तंत्र)
वृंदावनं तु गहनं विशालं विस्तृतं वहु मुनिनामाश्रयै पूर्ण वन्यं वृन्द समन्वितम्। (स्कन्द पुराण)
४. बनं वृन्दाबनं नाम पशव्यं नव कननम्।
गोपगोपीगवां सेव्यं पुष्पादि तृण वीरुधम्।। (भागवत दशम स्कंध)
५. रघुवंश, ६-५०
६. ब्रजबस्तु वर्णन
७. ब्रज भक्ति विलास, पृष्ठ २-३
८. ब्रज भक्ति विलास, पृष्ठ ३०-३१
९. ब्रज भक्ति विलास, पृष्ठ ३५-३६

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