ब्रज-वैभव

ब्रज का भौगोलिक वर्णन

ब्रज की झीलें, सरोवरें, कुंड, ताल, पोखर, बावड़ी, कूप


ब्रज की झील - ब्रज की सीमान्तर्गत कई छोटी-बड़ी झीलें हैं, जिनके नाम निम्न प्रकार हैं - 

नोहझील - यह मथुरा जिलाकी भाँट तहसील के अन्तर्गत इसीनाम के ग्राम के समीप स्थित है

मोती झील - यह भी भाँट तहसील में भाँट ग्राम के पास स्थित है। यह अब यमुना नदी की धारा में समा गई है।

कीठम झील - यह दिल्ली आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग सख्या-२ पर रुनकुता नामक ग्राम के समीप स्थित है। ब्रज की यह सरम्य स्थली सैलानियों के लिये आकर्षण का भी केन्द्र है।

मोती झील (दूसरी) - यह भरतपुर के समीप का जलाशय है, जो वहाँ की रुपारेल नामक छोटी नदी के पानी से भरा जाता है।

केवला झील - यह अत्यन्त सुंदर झील भरतपुर के समीप है, जो अजान बंध के जल से भरी जाती है। शरद ॠतु में इस झील के किनारे देश-विदेश के अगणित जल पक्षी विहार करने हेतु पहुँचते हैं। सैलानी उन पक्षियों को देखने के लिए यहां आते हैं।

मोती झील - यह वृन्दाबन रमणरेती में स्वामी अखंडानंद आश्रम का एक जलाशय है। यह कफी गहरा है और इसके फर्स सहित चारों ओर से पक्का है। इसमें उतरने के लिये चारों ओ सीड़िया निर्मित हैं, जो पस्तर की हैं। इसमें वर्षा के जल को संचित कर लिया जाता है, किन्तु वर्तमान समय में अल्प वर्षा के कारण खाली रह जाती है और इसमें जो अल्प जल रहता भी है तो वह वहुत पवित्र नहीं है।


ब्रज की सरोवरें - कवि जगतनंद के अनुसार चार सरोवर हैं जिनके नाम हैं - पान सरोवर, मान सरोवर, चंद्र सरोवर और प्रेम सरोवर।

पान सरोवर - ब्रज के नंदगाँव का यह एक छोटा जलाशय है। १

१. पान सरोवर, मान सरोवर और सरोवर चंद। प्रेम सरोवर चार ये, ब्रज में कहि जगनंद।। (ब्रजवस्तु वर्णन)

 

मानसरोवर - वृन्दावन के समीप यमुना के उस पार है। यह हित हरिवंश जी का प्रिय स्थल है यहाँ फाल्गुन में कृष्ण पक्ष ११ को मेला लगता है।

चन्द्र सरोवर - यह गोबर्धन के समीप पारासौली ग्राम में स्थित है। इसके समीप बल्लभ सम्प्रदायी आचार्यो द्वारा वैठकें आयोजित की जाती थीं और यह सूरदास जी का निवास स्थल है।

प्रेम सरोवर - यह वरसाना के समीप है। इसके तट के समीप एक मंदिर है। भाद्रपद मास में इस सरोवर पर नौका लीला का आयोजन और मेला होता है।


कुंड - ब्रज में अनेक कुंड हैं, जिनका अत्यन्त धार्मिक महत्व है। आजकल इनमें से अधिकांश जीर्ण-शीर्ण और अरक्षित अवस्था में हैं, जो प्राय सूखे और सफाई के अभाव में गंदे पड़े हैं। इनके जीर्णोद्धर और संरक्षण की अत्यन्त आवश्यकता है, क्योंकि इन कुंडों के माध्यम से भूगर्भीय जल स्तर की बड़ोतरी होती है साथ-ही-साथ भूगर्भीय जल की शुद्धता और पेयशीलता बड़ती है। कवि जगतनंद के अनुसार ब्रज में पुराने कुंडों की सख्या १५९ है तथा बहुत से नये कुंड भी हैं। उन्होंने लिखा है पुराने १५९ कुंडों में से ८४ तो केबल कामबन में हैं शेष ७५ ब्रज के अन्य स्थानों में स्थित है। १


१. उनसठ ऊपर एकसौ, सिगरे ब्रज में कुंड।
चौरासी कामा लाखौ, पतहत्तर ब्रज झुँड।। 
औरहि कुंड अनेक है, ते सब नूतन जान।
कुंड पुरातन एकसौ उनसठ ऊपर मान।। (ब्रजवस्तु वर्णन)


ताल - ब्रज में बहुत से तलाब हैं जो काफी प्रसिद्ध हैं। कवि जगतनंद ने केवल दो तलाबों - रामताल और मुखारीताल का वर्णन प्रस्तुत किया है। १ इनके अतरिक्त भी बहुत से तालाब हैं, जिनमें मथुरा का शिवताल प्रसिद्ध है।


१. दोइ ताल ब्रज बीच हैं, रामताल लखिलेहु।
और मुखारी ताल है, 'जगतनंद' करि नेहु।। (ब्रजवस्तु वर्णन)


पोखर - ब्रज में अनेकों पोखर अथवा वरसाती कुंड हैं। कवि जगतनंद ने उनमें से ६ का नामोल्लेख 
किया है वे पोखर हैं - 

(१) कुसुमोखर (गोबर्धन) 

(२) हरजी ग्वाल की पोखर (जतीपुरा) 

(३) अंजनोखर (अंजनौ गाँव)

(४) पीरी पोखर और

(५) भानोखर बरसाना तथा ईसुरा जाट की पोखर (नंदगाँव) है। १ उनमें कुसुम सरोवर को ब्रज के जाट राजाओं ने पक्के विशाल कुंड के रुप में निर्मित कराया था।


१. पोखर षट् अब देखिलै, कुसमोखर जियजान। हरजी पोखर, आंजनी पीरीपोखर मान।
मानोखर अरु ईसुरा पोखर कहि 'जगनंद'। ब्रज चौरासी कोस में ब्रज कौ पूरनचन्द्र।।


बावडी - इनका प्रयोग ब्रज प्रजा पेय जल के प्राप्त करने के लिये करती थी। ब्रज में अभी भी कई प्रसिद्ध और सुन्दर बावड़ी है, किन्तु ये जीर्ण अवस्था में पड़ी है। इनमें मुख्य निम्न वत हैं - ज्ञानवापी (कृष्ण जन्मस्थान, मथुरा), अमृतवापी (दुर्वासा आश्रम, मथुरा), ब्रम्ह बावड़ी (बच्छ बन), राधा बावड़ी (वृन्दाबन) और कात्यायिनी बावड़ी (चीरधाट) हैं।


कूप - ब्रज में वहुसख्यक कूप हैं जिनका उपयोग आज भी ब्रजवासी पेय जल प्राप्त करने के लिये करते हैं। ब्रज मंडल के अधिकांश ग्रामों की आवसीय परिशर में भूगर्भीय जल खारी है अथवा पीने के लिये अन उपयोगी है। अतः इस संदर्भ में कहावत प्रचलित कि भगवान कृष्ण ने बचपन की सरारतों के चलते ब्रज के ग्रामों की आवसीय परिशर के भू-गर्भीय जल को इस लिये खारी (क्षारीय) और पीने के लिये अन उपयोगी बना दिया ताकि ब्रज गोपियाँ अपनी गागर लेकर ग्राम से बाहर दैनिक पेय जल लेने के लिये निकले और कृष्ण उनके साथ सरारत करें, उनकी गागरों को तोड़ें और उनके साथ लीला करें। आज भी ब्रज ग्रामीण नारियों को सिर पर मटका रख ग्राम से बाहर से जल लाते हुए समुहों के रुप में ग्राम बाहर के पनधट और कूपों पर देखा जा सकता है। पेय जल के साथ-साथ इन कूपों का ब्रज में धार्मिक महत्व भी है। कवि जगतनंद के समय में १० कूप अपनी धार्मिक महत्ता के निमित्त प्रसिद्ध थे। इनके नाम इस प्रकार वर्णित हैं - 

(१) सप्त समुद्री कूप, 

(२) कृष्ण कूप, 

(३) कुब्जा कूप (मथुरा), 

(४) नंद कूप (गोकुल और महाबन), 

(५) चन्द्र कूप (चन्द्र सरोवर गोबर्धन), 

(६) गोप कूप (राधा कुंड), 

(७) इन्द्र कूप (इंदरौली गाँव-कामबन), 

(८) भांडीर कूप (भाडीर बन), 

(९) कर्णवेध कूप (करनाबल) और वेणु कूप (चरण पहाड़ी कामबन) १


१. ब्रज में लख दस कूप हैं, सप्तसमुद्रहि जान। नंद कूप अरु इन्द्र कूप, चन्द्र कूप करिमान।।
एक कूप भांडीर कौ, करणवेघ कौ कूप। कृष्ण कूप आनंदनिघिस बेन कूप सुख रुप।। 
एक जु कुब्जा कूप है, गोप कूप लखि लेहु। 'जगतनंद' वरननकरत ब्रज सौं करौ सनेह।। 

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