ब्रज-वैभव

ब्रज का स्वरुप एवं सीमा

भाषायी ब्रज


जिस प्रकार शूरसेन जनपद रुपान्तर से मथुरा राज्य और फिर ब्रज या ब्रजमंडल नाम से प्रसिद्ध हुआ, उसी प्रकार प्राचीन शौरसेनी भाषा ही नामान्तर से शौरसेनी प्राकृत, शौरसेनी अपभ्रंश और फिर ब्रजभाषा कहलाई है। जिस प्रकार शूरसेन जनपद और मथुरा राज्य की भौगोलिक सीमाओं से शौरसेनी प्राकृत और शौरसेनी अपभ्रंश के समझने-बोलने एंव लिखने-पढ़ने वालों का क्षेत्र कहीं अधिक विस्तृत था, उसी प्रकार मथुरा मंडल अथवा ब्रजमंडल की सीमाओं के क्षेत्र से कहीं अधिक विस्तृत है। इसमें इतना अन्तर अवश्य है कि शूरसेंन या मथुरा राज्य का वास्तविक प्रतिनिधि ब्रजमंडल ही है, किन्तु शौरसेन भाषा के प्रतिनिधित्व का दावा ब्रजमंडल के अतिरिक्त हिन्दी की समस्त बोलियाँ वल्कि उत्तर भारत की अन्य कई भाषाऐं भी कर सकती हैं।

        भाषायी ब्रज के सम्वध में भाषा विद् डॉ. धीरेन्द्र जी वर्मा ने लिखा है-

        ''ब्रजभाषा विशुद्ध रुप में मथुरा, अलीगढ़, आगरा, भरतपुर और धौलपुर के देशी राज्यों में बोली जाती हैं। ब्रजभाषा का पडोस की बोलियों से कुछ मिश्रित रुप से जयपुर राज्य के पूर्वी भाग तथा बुलंदशहर मैनपुरी, एटा, बरेली और वंदायु जिलों तक बोला जाता है। ग्रियसन महोदय ने अपनी भाषा सर्वे में पीली भीत, शाहजहाँ पुर, फर्रूखाबाद, हरदोई, इटावा तथा कानपुर की बोली को कन्नौजी नाम दिया है, किन्तु वास्तव में यहां की बोली मैनपुरी, एटा बरेली और बदायुँ की बोली से भिन्न नहीं हैं। अधिक से अधिक हम इन सब जिलों की बोली को 'पूर्वी ब्रज' कह सकते हैं। सच तो यह है कि बुन्देलखंड की बुन्देली बोली भी ब्रजभाषा का ही रुपान्तरण है। बुन्देली 'दक्षिणी ब्रज' कहला सकती है। १''

        डॉ. गुलाबराय के अनुसार ब्रजभाषा का क्षेत्र निम्न प्रकार है- ''मथुरा, आगरा, अलीगढ़ जिलों को केन्द्र मान कर उत्तर में यह अलमोड़ा, नैनीताल और विजनौर जिलों तक फैला है। दक्षिण में धौलपुर, ग्वालियर तक, पूर्व में कन्नोज और कानपुर जिलों तक, पश्चिम में भरतपुर और गुडगाँवा जिलों तक इसकी सीमा है।''

        भाषायी सर्वेक्षण तथा अन्य अनुवेषणों के आधार पर श्रीकृष्ण दत्त वाजपेयी ने ब्रजभाषा-भाषी क्षेत्र निम्नलिखित है -

        ''मथुरा जिला, राजस्थान का भरतपुर जिला तथा करौली का उत्तरी अंश जो भरतपुर एंव धौलपुर की सीमाओं से मिला-जुला है। सम्पूर्ण धौलपुर जिला, मध्य भारत में मुरैना से भिण्ड जिले और गिर्द ग्वालियर का लगभग २६ अक्षांश से ऊपर का उत्तरी भाग (यहां की ब्रजबोली में बंदेली की झलक है), सम्पूर्ण आगरा जिला, इटावा जिले का पश्चिमी भाग (लगभग इटावा शहर की सीध देशान्तर ७९ तक), मैनपुरी जिला तथा एटा जिला (पूर्व के कुछ अंशों को छोड़कर, जो फर्रूखाबाद जिले की सीमा से मिले-जुले है), अलीगढ़ जिला (उत्तर पूर्व में गंगा नदी की सीमा तक), बुलंदशहर का दक्षिणी आधा भाग (पूर्व में अनूप शहर की सीध से लेकर), गुड़गाँव जिले का दक्षिणी अंश, (पलवल की सीध से) तथा अलवर जिले का पूर्वी

भाग जो गुडगाँव जिले की दक्षिणी तथा भरतपुर की पश्चिमी सीमा से मिला-जुला है। ३

        ब्रज के उक्त समस्त स्वरुप इस समय समाप्त प्राय हैं। राजनैतिक ब्रज का तो असितित्व ही नहीं है, भाषायी ब्रज भी उत्तर प्रदेश और राजस्थान राज्यों में विभक्त होने से खंडित हो गया है। धार्मिक ब्रज और सास्कृतिक आपस में मिलकर एक सांस्कृतिक इकाई के रुप में विधमान है, चाहे इसका असितित्व कृष्ण भक्तों के भाव जगत तक ही सीमित है। 


१. ब्रजभाषा व्याकरण, (प्रथम संस्करण १९३७ ई.) पृ. १३

२. साप्ताहिक हिन्दुस्तान, (३ मार्च १९५७ ई.)

३. वाजपेयी, के. डी., ब्रज का इतिहास प्रथम खंड, प्रथम संस्करण, १९५५ ई., पृ. ३-४

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