ब्रज-वैभव  

ब्रज का स्वरुप एवं सीमा

आध्यात्मिक ब्रज


राधा-कृष्णोपासक भक्तों ने अपनी उपासना और मानसी ध्यान के लिये व्रज के एक आध्यात्मिक स्वरुप की भी कल्पना की है। उन कल्पना-शील भक्तों में इस महिमांडित दिव्य ब्रज के गोलोक का प्रतीक माना गया है। व्रम्हावैवर्त पुराण और गर्ग संहिता जैसे कृष्ण लीला के पवर्ती ग्रन्थों में गोलोक का अत्यन्त अलौकिक और रहस्यपूर्ण वर्णन प्रस्तुत किया गया है। वह महत्तम ऐश्वर्यपूर्ण दिव्य गोलोक धाम, सहसदल कमल के समान मंडलाकार गाना गया है।

यह आध्यात्मिक व्रज भी गोलोक का प्रतीक होने के कारण विविध दल (पंखडियों) वाले खिले हुए कमल पुष्प के समान गोलाकार माना गया है।इसके दलों की संख्या १२, २४, ३२ अथवा और भी अधिक कल्पित की गयी। और इन्हें विविध बन-उपबनों का रुप माना गया है। मथुरा नगरी उक्त ब्रज कमल की कर्णिका वतलायी गयी है। साधारणतः ब्रजकमल १२ दल माने गये हैं जो यहां के प्रमुख १२ बनों के धोतक हैं। ?

औरंगजेव के पुत्र आजमशाह के ब्रजभाषा से परिचित कराने के क्रम में मिरजा खाँ ने १७ वीं शती में जिस तोफह-उल-हिन्द नामक फारसी ग्रन्थ की रचना की थी उसमें लिखा है- ''ब्रज भारत के उस प्रदेश का नाम है, जो मथुरा को केन्द्र मानकर ८४ कोस में मंडलाकार स्थित है।'' १

ब्रज का यह गोलाकार स्वरुप आध्यात्मिक दृष्टि से ही माना गया है, इसके धार्मिक सांसकृतिक रुप से उसकी संगति वैठाना काठिन है। इस रुप में मंडल का अर्थ केवल गोलाकार करना भी उचित नहीं है। डॉ दीनदयाल गुप्त ने लिखा है - ''राजनैतिक क्षेत्र में मंडल का बोध 'जनपद' रुप में भी होता है।'' वास्तव में ब्रज मंडल का अर्थ ब्रज जनपद अथवा ब्रज प्रदेश करना ही समी-चीन है।

 

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