Alha Udal


आल्ह- रुदल

आल्ह- ऊदल लोककथा से जुड़े प्रमुख नगर, स्थल, गढ़ आदि

उरई : उत्तर प्रदेश : प्राचीन काल में यह महोबा की जागीर था

कन्नौज : प्राचीनतम नगरों में परिगणित किया जाता है, नाम था कनवज्ज, कान्य कुब्ज

कुरहट : कन्नौज के उत्तरवर्ती, यमुना- तट पर स्थित

कालपी : कानपुर- उरई के बीच यमुना तट पर स्थित- पहले राजधानी था। यहाँ का कागज प्रसिद्ध था।

काबुल : अफगानिस्तान का नगर

कुमाऊँ : उत्तर प्रदेश का पर्वतीय क्षेत्र 

कोट काँगड़ा: पंजाब का पर्वतीय क्षेत्र, प्रसिद्ध गढ़ 

खजुहा : (खजुराहो अथवा खर्जुरवाह) चंदेलों का प्राचीन नगर (९०० ई. में महोबा चले गए थे।) उन्होंने पिच्चासी कलात्मक मंदिर बनवाए थे जो आज भी पर्यटकों के लिए आकर्षक का केंद्र है

गाँ : गुजरात

गोरखपुरः उत्तर प्रदेश

चरखरी

चुनार

जाजमऊ: गंगा- तट पर कानपुर के ठीक बीच में स्थितः अब प्राचीन भूखण्ड व्यवस्थापन में परिगणित है।

जुन्नागढ़ : ग्रियर्सन इसे काठियावाड़ वाला जूनागढ़ संभावित नहीं करते। गजेटियर आॅफ इंडिया।। के मानचित्र में गोदावरी नदी पर स्थित जुन्नार और पाथरी नामक दो नगर अंकित हैं। जुन्नार में एक विशाल गढ़ है, जो अब शिवनेरी गढ़ के नाम से प्रसिद्ध है। यह छत्रपति शिवाजी का जन्म- स्थल (१६२७ ई.) था। संभवतः यही जुन्नागढ़ था। जुन्नागढ़ से कटक (सिंध) सात दिन का रास्ता बताया गया है।

झाँसी : यह नाम जहाँगीर के शासनकाल से पूर्व नहीं मिलता- उत्तर प्रदेश

झारखंड : बैजनाथ बिहार का वन प्रांतर

दरिया : ग्वालियर रियासत का एक नगर, अब मध्य प्रदेश

दसपुरवा (दसहर पुर): महोबा का समीपवर्ती, मार्ग निर्देशक नगर

दिल्ली : भारत की राजधानी

नरबर (मौरंगगढ़): ग्वालियर रियासत का प्राचीन गढ़

नाहरगढ़: मध्य प्रदेश

नैनवा नैनागढ़: राजस्थान के अल्हैत इसे मिर्जापुर जिले का चुनारगढ़ बताते हैं।

निमसर मिस्त्रिखः अवध के सीतापुर जिले में स्थित तीर्थ- स्थलः यात्री निमसर पर एकत्र होकर मिस्त्रिख के बढ़े ताल तक जाते हैं।

पटना : बिहार की राजधानी

परहुल :

पथरीगढ़: गजेटियर आॅफ इंडिया।। में गोदावरी नदी पर स्थित पाथरी नाम मिलता है। क्या यही पथरीगढ़ है ?

बक्सर : गाजीपुर और वाराणसी के दक्षिणवर्ती गंगातट पर स्थित - अब बिहार

बनौधा : अवध, जौनपुर, आजमगढ़, बनारस के जिलों का दक्षिणवर्ती क्षेत्र।

काबुल : 

बाँदा : उत्तर प्रदेश

बिठूर : गंगा- तट पर, कानपुर के समीप

बूँदी : राजस्थान

बौरीगढ़ बिरियागढ़: (१.)ग्रियर्सन के अनुसार मिर्जापुर का दक्षिणवर्ती गढ़ था, जो अब बीजापुर कहलाता है। यहाँ जम्बे के खंडहर अब भी विद्यमान है।

२. मध्य प्रदेश-- उड़ीसा की सीमा पर स्थित बरगढ़ क्या बिरियागढ़ था ? नरवर से बिरियागढ़ (बौरीगढ़) बारह दिन का रास्ता बताया गया है। 

बुंदंल खंड : प्राचीन नाम जैजाकभुक्ति

महोबा : पहले परिहारों के अधिनस्था था। चंदेलों ने इन्हें निकाल दिया था। शुक्लपक्ष की श्रावणी तीज को अब भी यहाँ बड़ा मेला लगता है। किरत सागर कीर्ति वर्मन (१०६५-१०८५ ई.) ने बनवाया था और मदन सागर मदन वर्मा ने।

मुल्तानः अब पाकिस्तान में।

मेवातः 

माड़ौ: विसेंट स्मिथ माडौं को नर्मदा नदी के आसपास मिर्जापुर का दक्षिणवर्ती विजयपुर संभावित करते हैं। यहाँ जम्बा के किले का खंडहर अभी तक मौजूद है। ग्रियर्सन माडू या मांड़ोगढ़ (माउरोगढ़) को धार का एक नगर मानते हैं, जो महोबा से सीधी लाइन में तीन सौ पचास मील के फासले पर है। गाथा में महोबा से माडौं सोलह दिन का रास्ता संकेतित हैं।

राजगिर- बिहारः राजगढ़ मध्यप्रदेश।

लहारः परगना

सिरसा: दिल्ली के राजः मार्ग पर स्थित सीमांत गढ़ था, दबोह से दक्षिण- पूर्व में ग्वालियर रियासत के अंतर्गत : दो मील पर छोटा- सा गाँव। लड़ाई की कहानियाँ अब भी जीवित हैं।

सिरौंज : मालवा का एक नगर

हरद्वार : उत्तर प्रदेश

हिंगलाजः अब (पाकिस्तान में) अरब सागर के मकरान तट सिंध से परे, खिलात में थोड़ी ऊँचाई पर स्थित तीर्थ- स्थल पगोड़ा।

कजरी वनः कदली देश (कजरी वन) या स्री देश, गोरक्ष विजय में स्रीदेश न कहकर कदली देश कहा गया है। कहते हैं कि इस कदली देश में अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान,विभीषण, कृपाचार्य और परशुराम सात चिरजीवी सदा निवास करते हैं। सुधाकर द्विवेदी के अनुसार देहरादून से लेकर ॠषिकेश, बद्रीकाश्रम और उत्तरवर्ती हिमालय प्रांत सब कजरी वन (कदली वन) कहे जाते हैं। 

हिमालय के पाद- देश में कामरुप से लेकर हिंगलाज तक एक प्रकार की यक्ष- पूजा दीर्घ काल से प्रचलित थी, जिसने कालांतर में बौद्ध धर्म को प्रभावित किया था। यही वज्रयान कहलाया।

हजारीप्रसाद द्विवेदी का मानना है कि मत्स्येन्द्र नाथ चंद्रगिरि नामक स्थान में पैदा हुए थे, जो कामरुप से बहुत दूर नहीं था और या तो बंगाल के समुद्री किनारे पर कहीं था या जैसा कि तिब्बती परंपरा से स्पष्ट है, ब्रह्मपुत्र से घिरी हुई किसी द्वीपाकार भूमि पर स्थित था। मत्स्येन्द्र नाथ किसी ऐसे आचार में जा फँसे थे, जिसमें स्रियों का साहचर्य प्रधान था और वह आचार ब्रह्मचर्यमय जीवन का परिपंथी था। यह स्थान "स्री देश' या "कदली देश' था जो कामरुप ही हो सकता है। (नाथ संप्रदाय)

भारतेंदु हरिश्चंद्र ने "कजरी वन' के संदर्भ में एक और जनश्रुति का हवाला दिया है। मध्य प्रदेश में दादूराय नामक राजपूत था। प्रजा राजा का बड़ा सम्मान एवं प्रेम करती थी। उसकी मृत्यु पर स्मृति रुप में "कजरी गान' का प्रादुर्भाव हुआ था। एक नाम दो कारणों से पड़ा।

१. "कजरी वन' राज्य की सीमाओं में पड़ता था।

२. मास के तीसरे दिन यह गीत गाया जाता था। उसे "कज्जली तीज' कहा जाता था। परंपरानुसार आल्हा, इस दिन वन में अदृश्य हो गया था। लोक- विश्वास के अनुसार वह आज भी इस वन में विद्यमान है और पुनः प्रकट होने की प्रतीक्षा में हैं। ५२० के अनुसार यह गढ़वाल में गंगा- तट पर स्थित है।

 

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