अक्षर-अक्षर अमृत

आरसी प्रसाद सिंह


पटनाक राजेन्द्र नगर, रोड नं.-१३, मुरारी भवन-बहादुरपुर गुमती, रेलवी लाइन, नव-पुरान-छोट-पैघ मकान, छोट-पैघ गली, चौक-चौराहाकें पार करैत हम मुरारी भवनक पछिला दरवाजामे प्रवेशक' गेल छी।

- 'आरसी बाबू छथिन की ?'

- के ? बाबा ? हँ ...... छथिन।

- अहाँ के ? आरसी बाबूक पौत्री ?

- 'हँ-हँ हम हुनकर पोती। विन्दू ।'

पता चलल आरसी बाबूक पटनाक गृहस्थीमे सम्प्रति पाँच गोटे रहै छथिन। स्वयं आरसी बाबू, दू पौत्र आ दू पौत्र दू पौत्री- सब संस्कारसम्पन्न- सुरुचिपूर्ण- कविताक पाँती जकाँ धिया-पुता सभ कोमल आ सुललित। बराम्दासँ सटल एकटा रुम- रुममे पलंग। सजाकऽ राखल विभिन्न फाइलमे आरसीक साहित्य-संसार- हिन्दी-अंग्रेजीक कतोक पत्र-पत्रिका, लेक आ कतरन। पलंगक सामने एकटा टेबुल। टेबुल पर दूटा गिलास-गलिसमे पानि झाँपल। दवाइ। सीरप। एकटा टू इन वन। फोन। दू टा कुर्सी। हम चरणस्पर्श करैत छिएनि- आरसी बाबू हमरा चिन्हबाक प्रयास कर' लगलाह।

- हम विश्वनाथ ..... टिकियोटोलीमे अपनेसँ भेंट होइत छल .... हरिमोहन बाबू, उमाशंकर वर्मा आ अपने सन् ७७ आ ८० क बीच- आरसी बाबू पुलकित भऽ उठलाह - तऽ ने कहू..... कते दिन पर अहाँ सँ भेट भेल अछि। आ अहाँक भाइ अमरनाथजी .... ओ तँ व्यंग्यकार छथि। कबकबक लेखक।

तकरा बाद आरसी बाबूक संग पारिवारिक गप्प होबय लागल। जीविका को? कतेक बाल-बच्चा? कोना की रहै छा? तारिख रहैक ४ सितम्बर १९९५। मुरारी भवनक पछिला हिस्सामे एकटा छोचछीन कोठलीमे हम आरसी बाबूक समक्ष नत-विनत भेल बैसल छी। हिन्दी आ मैथिलीक अपराजेय कवि। जीवन्त व्यक्तित्व-स्वच्छन्द। घड़ीमे बजैत रहैक तीन। पच्छिम भरसँ मेघ भरल चल अबैत रहैक। हम साकांक्ष होइत पुछलियनि 'आरसी' कोना भेल? उपनाम थिक की? ..... आरसी?

चाहक कर उठबैक पुछलियनी - 'अपने पर जयप्रकाशनारायणक आन्दोलनक क्रममे, मैथिली लेखनक क्रममे, हिन्दी प्रयोगवादक क्रममे पलायनवादक आरोप लगाओल जाइत अछि। एहि सम्बन्धमे अपनेक की प्रतिक्रिया ? '

-'हमर यैह प्रतिक्रिया जे हम 'अपटी खेतमे प्राम' नहि गमाबए चाहैत छी। हमर सबसँ पहिल धर्म धिक अपन लेखकीय ऊर्जाक रक्षा करब। जखन बुझै छिऐ हमर ऊर्जा नष्ट भ' रहल अछि तँ दिशा बदलि लै छिऐ । बुझैत जे की सत्य छै' आ मि की .... बूझल किने ! हम पहिनहि लीखि देने छिऐक -

'सत्य धरती, सत्य थिक आकाश

परम सत्य मनुक्ख अपनहि थिक'

-'अपनेक जीवन यायावर जकाँ बीतल-घुमैत-बुलैत, कहल जाए अपनेकें सबसँ नीक कतए लागल कतऽ भेटल असल आनन्द ? ''

यात्रीजीक आँखि मुस्कुरा उठलनि, बजलाह - 'हम जतऽ रहै' छी, ततहि हमरा नीक-लगै ए। सब परिस्थिति, सब वातावरण-सबमे रमि जाइत छी। सब ठाम आनन्दित, सब ठाम मुग्ध ।'

यात्रीजीकें जेना किछु मोन पड़लनि, साकांक्ष होइत पुछलनि -'लखनजीक की हाल ..... ?

डा० लक्ष्मण झाक प्रसंग गप्प चलऽ लागल। यात्री मुस्कुराइत बजलाह - 'बुझलहुँ, एक बेरक गप्प ... एकटा सभामे लखन जी सँ भेंट भेल मंच पर। कहलनि - यात्री, आधुनिक मिथिला मे दुइएटा महापुरुष-एकटा हम आ दोसर अहाँ।'' ई गप्प कहि यात्रीजी बच्चा जकाँ हँसए लगलाह - कबू तँ हमरा के महापुरुष मानत ? लखन जी सरल हृदयक शुद्ध तहिना उग्र ... कचोट होइ-ए एना किएक भ' गेलनि ?'

-' अपने गाम गेल रहिऐक एहि बीच ... ?'

-'कहाँ गेलिएक ? पाँच महिनासँ एतहि छी - अस्पताल आ लहेरियासराय । गामहिसँ किछु गोटे आएल छलाह-भेट करबाक हेतु । ... गाम मे टिकल रहितहुँ तँ दस-पाँच विघा जमीन हमरो रहैत - पृथ्वीते पात्रं - बउआ, से जमीन नहि भेल मुदा से जमीन ल'क' की होइत ? मुक्त छी, स्वछन्द छी - जमीन जंजालसँ दूर छी। ओहिमे फँसितहुँ तँ की लिखितहुँ ?'

''अपनेकें भोजनमे की नीक लगैत अछि ?''

एखन तँ डाक्टरक कन्ट्रोलमे छी, बिना खेइचा बला' माछ ... सैह चलै-ए... मांगुर खाली मांगुर ... गैंची। एकटा हमर गाममे रहथि शतञ्जीवझा। ... हमर गाम वैरागीक दल एक बेर आएल। शतञ्जीक झाकें कण्ठी बन्हि देलकै। बादमे हुनका पराभव। माछ छोड़ल नहि जान्हि। माछक हाट पर चल जाथि-माछक सुँघानी लेबाक लेल। तीन बेर कण्ठी तोड़लनि। हमूँ पांच बरख माछ छोड़ि देने रहिऐ - मुदा एक बेर तेहन घटना घटल जे ...

-'जी कोन घटना ?'

- 'हम गेलहुं श्रीलंका। भ'गेल रही वैष्णव। मुदा भोजन जे करी तँ मछाइन गन्ध लागए । एक दिन भनसाघर गेलहुँ तँ भनसीया कहलक - जे बाबू सब माछ नहि खाइत छथि तनिका सभक तरकारीमे माछकक पाउडर मिला दैत छियनी । ... हम सोचलहुँ दुत्तोरीके ... तखन पाउडर किएक खाएब ? ला .... माछे खुआ !

- मुदा आब तँ सब बाँतर, सब बन्द, डाक्टरक दवाइ मांगुर माछ, बस ।

- अपनेकें कोनो एहन इच्छा अछि, जकर पूर्ति नहि भेल होइए ?'

-' हँ, एकटा इच्छा अछि ... '

- 'जी ...... ?'

-'किछु गोटए कहलनि जे हिन्दीमे अपने ततेक लिखलिऐक -- ततेक प्रयोग कएलिऐक जे अपने सँ आब क्यो टपि नहि सकैत अछि तें आब शेष जीवन मैथिलीमे लीखल जाए ... से बउआ, एकटा इच्छा अछि ....

हमरा लोकनि उत्सुक होइत पुछलनियनि - 'कोन इच्छा ?'

-'आब जे जीवन बाँचल अछि से मैथिलीक कलेल अर्पित कर दी ! मैथिलीमे कविता लिखैत-लिखैत ! लेखन आ संघर्ष दूनू चलत। ... आकाशवाणी सँ मैथिली भाषाक उत्थानक लेल हमर जान हाजिर अछि । हम अपन बलि चढ़ा सकैत छी .... मैथिलीक अपमान आब वरदास्त नहि होइत अछि !'

यात्रीजीक आकृति कम्पित भ' उठलनि, बजलाह - 'जकर माइक भाषा अपमानित रहैत छैक तकरा कतहु सम्मान नहि भेटैत छैक ।'

अन्हार चारुकात पसरि गेल रहइक। ठाम-ठाम बिजलीक बल्ब सब अन्हार सँ लड़इत रहय-अन्हार आ इजोत। उठैत-उठैत पुछलियनि - 'यात्री आ नागार्जु मे की अन्तर ?'

-' कोनो, अन्तर नहि ... कहियत भिन्न न भिन्न ... यात्री अथवा नागार्जुन महासमुद्रक एक बुन्द मात्र, एक बुन्दक एक कण, एक कणक एक अंश मात्र, वश, ततबे ।'

-'जी, आब आज्ञा देल जाए ?'

- 'अहाँ सब फेर भेट देब ... अबस्स आएब एक दिन ... बिना खोंइचा बला' माछ संग बैसिकऽ खाएब ... आएब ... आएब अवश्य ?'

आरसी बाबू मुस्कुराय लगलाह, कहलनि, ""असलमे हमर असली नाम थिक - रामचन्द्र प्रसाद सिंह - जखन हम स्कूलमे रही, हमर दोस्त-महिम सब अंग्रेजीमे हमर नामक संक्षेपीकरण क' देलनि आर० सी०, .... आर० सी० आरसी प्रसाद सिंह भ'गेल । पहिने बड्ड खराप लागय । मित्र ... बन्धुकें कहियनि रामचन्द्र कहू - रामचन्द्र प्रसाद सिंह । मुदा कथी ले क्यों बात मानत?

-"तखन ?'

"तखन की ? हमहू सोचल "आरसी' अति दिव्य । आलसी माने अइना - उर्दू साहित्यमे आइना रक अनेक शेर । हिन्दीमे एकटा मुहावरा छैक' - हाथ कंगल को आरसी क्या ? आब तँ सब आरसी प्रसाद सिंह नामसँ जनैत अछि। आब तँ यैह असली नाम। बुझल किने !

"अपनेक शिक्षा-स्कूल-कालेज में ?'

हमर गाम अछि एरौत रोसड़ास समीप .... जेना कि हमरा मोन पड़ैत अछि, सन् १९१८ ई० मे गामक प्राथमिक पाठशालामे हमर नामांकन भेल । विद्यारंभ भेल । तकर बाद हम मिडिल इंगलिश स्कूल, किंग एडवर्ड आंग्ल उच्च विद्यालय, समस्तीपुर तथा नार्थब्रुक जिला स्कूल, दरभंगामे शिक्षा ग्रहण कएल। सन् १९३० ई० मे हम नार्थब्रुक जिला स्कूल दरभंगासँ प्रवेशिका परीक्षा उत्तीर्ण कएल ।'

''जी, तकर बाद ''

-''तकर बाद कवीन्द्र रवीन्द्र द्वारा संचालित शांति निकेतन (बोलपुर), काशी हिन्दु विश्वविद्यालय, बिहाल नेशनल कालेज, पटना तथा नालन्दा महाविद्यालय, बिहारशरीफ आ अंतत: तेजनारायण जुबली कालेज भागलपुरमे इण्टर द्वितीय वर्षमे नामांकन .... मुदा ''...

- मुदा .... ?

- ""गाँधीजीक चिन्तनक प्रभाव - स्वातंत्र्य आन्दोलनसँ उत्प्रेरित । फलत: जनवरी सन् १९३३ ई० मे सवंदाक लेल छात्र जीवनक परित्याग क' देलिऐक । ..... बादमे बहुत इच्छा हुअए आर पढितहुं।

विद्यापीठ सबमे अध्ययन करबाक इच्छो भेल । मुदा मोने नहि मानलक । छोड़ि देलिऐ तँ छोड़ि देलिऐ । इण्टरक परीक्षा नहि द' सकलहुँ। - छोड़ देलिऐ ।''

- ""अपनेक पहिल काव्य-रचना ?''

- ""हमर पहिल काव्य रचना अछि "आमक गाछ' पर हिन्दीमे । हम जखन समस्तीपुरमे पढ़ैत रही त ओतहि "बालक' पत्रिकाक ग्राहक भ"गेल रही। लहेरियासराय, पुस्तक भंडार सँ "बालक' पत्रिका प्रकाशित होइत रहइक । कोनो अंकमे "आम का पेड़' विषय पर बच्चा सबसँ कविता माँगल गेल रहैक । हमरो उत्सुकता भेल। भरि राति जागिक "लिखलहुँ "आम का पेड़" सितम्बर १९२७ क बालकमे प्रकाशित भेल रहैक । सुनू ओकर दूटा पाँती एखनो मोन अछि ।

 

हे रसाल तो सों सरस, मैने कही लखा न

सारे जगके काज लगि सहते दु:ख महान

जखन हम दरभंगा जिला स्कूल में पढ़ैत रही .... किशोर वय ... कल्पनाक उड़ान ... कतेक कविता लिखलहुं, मुदा एक बेर बड़ विपत्ति पड़ि गेलहुँ ।''

- से की ?

""तहिया दरभंगामे एक गोट जीवन्त साहित्यिक गोष्ठी रहैक - "हिन्दी साहित्य गोष्ठी ' एहि गोष्ठीक संचालक रहथि लहेरियासरायक जटाधर प्रसाद शर्मा ... कोनो राष्ट्रीय विद्यालयमे अध्यापक - नव-नव प्रतिभाकें प्रोत्साहन, स्नेह एवं संवर्द्धन प्रदान करबामे जटाधर बाबूक जोड़ा नहि एक बेर की भेलैक तँ गोष्ठीमे "मेघ' पर कविता सुनएबाक रहइक । सावन-भादवक मौसम। झड़ी लागल। कवित्त छन्दमे हम "मेघ' पर कविता रचलहुँ। सांझमे गोष्ठीमे हमर काव्यपाठ भेल। कविता सुनि सब वाह-वाह कएलनि। मुदा दैव संयोगात हमर जिला स्कूलक हिन्दी शिक्षक सेहो आमंत्रित रहथि। शृंंगार-रसपूर्ण "मेघ' पर हमर कविता सुनि आगि-बबूला भ' गेलाह - राति मे होस्टल मे ओ हमरा निर्दयतापूर्वक पिटलनि । घोर यातना। तें की हम कविता लिखब छोड़लहुं ? मुदा हम एहि घटनाकें एखनहुँ नहि बिसरि सकलहुँ अछि ।....''

- ""गालिब शिकस्त की आवाज हूँ ... कहिक दु:खसँ कविताक सृजन मानैत छथि। आदिकवि वाल्मीकि .. भवभूति .... आदि करुणासँ कविताक जन्म कहैत छथि। अपनेक की विचार ?''

- "हमर स्पष्ट विचार अछि - हम अवसाद, निराश आ करुणामे डूबल कवि नहि छी। हम जीवन, यौवन, उल्लास आ हर्षक कवि छी। ... .हमर आवाज छै कुंठा, अवसाद, विषाद आ पराजयक विरोधमे - हम अंधकारसँ प्रकाश दिश जाइत छी - तमसो मा ज्योतिर्गमय - हे काव्यदेवी ! हमरा अंधकारसँ प्रकाश दिस ल' चलू।

- मुदा जँ दिन खतम भ जाइक ?

- तं चन्द्रमाक प्रकाशमे निहारु।

- मुदा आमावश्याक रातिमे ?

- झिल-मिल ताराक इजोतमे रास्ता ताकू !

- मुदा भरल मेघ आमावश्यामे ?

- दीपशिखाकें ज्वलित करु - अगणित दीपशिखाकें ज्योतिर्मय क' लिअ

- मुदा घोर जंगल विजन बाट मे .....

- आरसीबाबू गम्भीर होइत कहलनि - 'तखन आत्मदीपो भव' ... आत्माक दीपकें ज्वलित करु ! आत्माक प्रकाशमे इजोत भेटत । हे वाग्देवी ! हमरा अंधकारसँ प्रकाश दिस ल! चलू ।

दम्माक वेद उठलनि । ... हम कातर भेल बैसल छी। ८४ वर्षक संघर्षपूर्ण जीवन-यात्रा । ययय आर खाँसीक वेग तेज भ' उठलनि। .... टेबुल पर राखल गिलास उठा लेलनि। गिलासमे पानि - नहुँए-नहुँए पानि पिउलनि - तखन बजलाह - ""बुझलहुँ किने एम्हर बड्ड अस्वस्थ भ" गेल रही - पथ्य आ दवाइ। मोन इति आकुल। डा० आर के मोदी इलाजमे छी। ओ हृदयरोग विशेषज्ञ छथि दम्मा आ एलर्जीक विशेषज्ञ। हमरा दम्मा आ एलर्जी बेदम कएने अछि ।""

- एखन अपने की सब भोजन करैत छिऐक ?

- "अधिक काल रोटी .....

- आ फल .... ?

- नहि फल नहि, फलसं हमरा एलर्जी !

- आ दूध ..... ?

- हँ थोड़-अधिक ... दूधो अपकारक, थोड़थाड़ दही।

- आ माछ ... ?

- हँ औ ! माछ खाइत छी। कमला-कोशी ... गंडकक परिसरमे हमर जन्म - से माछ

- बेतरेक रहल नहि होइए।

- सबसँ अधिक की खयबाक मोन होइत अछि ?

- आरसी बाबू निर्विकार भाव कहलनि ""मोन तँ मिठाइ-ए पर होइछै। मुदा मिठाइ साफ बन्द ... एकदम निषेध। असलमे कएलिऐ हम अत्याचार - बड्ड मिठाइ खेलिऐ से आब कोटा पूरा भ" गेलैक।""

- पटनाक राजेन्द्र नगर मुहल्लाक मुरारी भवनमे हम बैसल छी। साँझ बितल जा रहल अछि। ऊपर आकाशमे मेघक टुकड़ी पसरल जा रहल छैक । हर्ष आ उल्लासक कवि, निर्झर झरना आ मस्तीक कवि, मिथिला आ मैथिलीक स्वाभिमानक कवि, अक्षर-चेतनाक कवि आरसी। हमर उत्सुकताक अंत नहि। अनेक प्रश्न जिज्ञासा

- मैथिली लेखनक प्रेरणास्रोत .. के प्रेरित कएलनि ?

- आरसी बाबू गंभीर होहत कहलनि - पुस्तक भंड़ारसँ भोला बाबू - भोला लाल दास "मिथिला' नामक पत्रिका प्रकाशित करैत रहथि। हमरो पठबैत छलाह। तहिया हमर कविता "बालक' में छपैत छल। "मिथिला' पत्रिका हम रुचिपूर्वक पढ़ल करी। मैथिलीक प्रति रुचि मिथिला पत्रिका सँ जागल। मुदा मैथिली मे जे हम लिखब आरंभ कएल तकर श्रेय छैन्हि बाबू भुवनेस्वर सिंह 'भुवन' कें। ओ साहित्यतपस्वी रहथि - साधक साहित्यकार। हिन्दी आ मैथिलीक प्रसिद्ध लेखक। हुनका जखन पता लगलनि जे हम कविताक रचना करैत छी तँ ओ हमरा कहलनि जे मैथिलीमे लिखू। संयोग एहन भेलैक जे मुजफ्फरपुरमे मैथिली साहित्य परिषदक छठम अधिवेशन आयोजित रहैख - भुवनजी कहलनि एहि मंच पर अवश्य कविता पढ़ू। बड़-बड़ विद्वान लोकनि आएल रहथि। ... ओतहि हम अपन पहिल मैथिली रचना प्रस्तुत कएल - शेफालिका ! एहि कविता पर हमरा पुरस्कार भेटल - रजत पदक ! .... मुदा मैथिलीमे जे हम समर्पित भेलहुँ तकर प्रेरणा भेटल हमरा डा० अमरनाथ झा सँ ।

- "से कोना ?'

- देखू, डा० अमरनाथ झाक मनीषासँ संपूर्म साहित्यजगत आह्मलादित रहय। ओना ओ इलाहाबाद विश्वविद्यालक कुलपति रहथि आ अंग्रेजीक विद्वान ... भारतीय भाषा साहित्यक ओ रहथि मर्मज्ञ। मैथिलीक कते कोन- हिन्दी आ उर्दूक ज्ञाता। अमरनाथ बाबू हिन्दी साहित्यय सम्मेलनक अध्यक्ष भेल रहथि। हुनक अध्यक्षीय बाषण हमरा पढ़बाक अवसर भेटल रहै। ओ कहने रहथिन हिन्दी हमर राष्ट्रबाषा थिक - हिन्दीक हम सम्मान करैत छी। मुदा हमर मातृभाषा मैथिली - डा० झाक एहि विचार सँ जेना हमरो मोनमे चिनगारी जागल - ठीके ने ! हमरो मातृभाषा तिक मैथिली - सुमधुर मैथिली, देसिल बयना विद्यापतिक मैथिली हमर मातृभाषा ...।

- "अपनेकँ डा० अमरनाथ झासँ सम्पर्क रहय ? '

- पहिने सन् ३९-४० सँ पत्राचारक माध्यमे हमरा संपर्क छल । जखन ओ बिहार लोकसेवा आयोगक चोयरमैन भ' क' पटना मे रहय लगलाह तँ हम हुनक आशीर्वाद आ स्नेहप्राप्त कएल । संपर्क घनिष्ठ भेल ! हुनकहि प्रेरणासँ हम मैथिलीक लेखन दिस पूर्ण रुपेण समर्पित भेलहुँ आ लिखलहुँ -

 

बैसि कंठ पर क्यो बरजोरी

स्वर नहि दाबि सकै अछि

मूँग दरड़ि सदिखन छातीपर

मुंह नहि जाबि सकै अछि

लेब अपन अधिकार आव हम

अ्पन महालक पानी

माँगि रहल छी प्रथम आइ हम

अपन मातृजन वाणी

 

- अपनेक मैथिलीमे प्रकाशित पुस्तक ?

- 'मैथिली मे हमर पहिल काव्य संग्रह दिसम्बर, १९५८ मे प्रकाशित भेल 'माटिक दीप' तारामंडल, मुजफ्फरपुर सँ। ... हमर दोसर कविता संग्रह 'पूजाक फूल' नवम्बर १९६९ मे प्रकाशित भेल। ... प्रकाशक तारामंडल मुजफ्फरपुर। सन १९५६ मे हमर तेसर पुस्तक 'मेघदूत' (अनुवाद) मैथिली प्रकाशन समिति, कलकत्ता सँ प्रकाशित भेल। मैथिलीमे हमर चारिम पुस्तक थिक - सूर्यमुखी .... मैथिली अकादमी पटनासँ प्रकाशित भेल छल। ... साहित्य अकादमीसँ पुरस्कृत भेल !

- "मैथिली' लेखनमे अपनेकें केहेन अनुभव भेल ?'

- मैथिलीमे हमरा सहज स्नेह आ सम्मान भेटल। मुजफ्फरपुरक साहित्य परिषद्क अधिवेशनक बाद हमरा विभिन्न गोष्ठीसँ आमंत्रण भेटए लागल । पुरस्कार आ प्रशस्ति सेहो भेटल।

- "जेना.... ? "

- जेना, मुजफ्फरपुरमे रजत पदक, माटिक दीप पांडुलिपि पर राघोपुर ड्योढ़ीसँ पुरस्कार, राजेश्वर झाक संयोजनमे मैथिली साहित्य संस्थानसँ १९७२ मे उपेन्द्राचार्य स्वर्णपदक, सन् १९७६ मे संकल्प लोक द्वारा सम्मान-पत्र, मन् १९८० मे चेतना-समिति द्वारा ताम्र-सम्मान-पत्र। मैथिली अकादमी पुरस्कार आदि प्राप्त भेल !

- अपने जखन मैथिलीमे प्रवेश कएलिऐक तखन वातावरम केहन रहैक ?

- वातावरण रहैक उत्साहवर्द्धक । .... अंग्रेजी शिक्षाक प्रचार-प्रसारसँ शिक्षित युवक लोकनिमे मातृभाषाक प्रति ममत्व जागल रहनि । पत्र-पत्रिकाक प्रकाशन होइत रहैक। गोष्ठीक आयोजन, अधिक काल कविगोष्ठी । गाम-गाममे विद्यापतिक जयन्ती। मिथिला मोद काशीसँ बहराइत रहइक। सुरेन्द्र झा "सुमन'क सम्पादनमे चर्चित "मिथिलांक' प्रकाशित भेल रहैक। मुजफ्फरपुरसँ मैथिलीक सपूत बाबू भुवनेश्वर सिंह "भुवन' विभूतिक प्रकाशन कए यशस्वी भेल रहथि।

- "ओहि समय मैथिलीमे कोन-कोन साहित्यकार अधिक मुखर रहथि ?

आरसी बाबूक मुद्रा गंभीर भ" उठलनि, बजलाह - मोन नहि अछि सभक नाम-आब मोन नहि अछि - ओना किछु नाम हम कहि सकैत छी।

- जी कहल जाय ?

- जेना काशीकांत मिश्र "मधुप', सुरेन्द्र झा "सुमन', चन्द्रनाथ मिश्र "अमर', कांचीनाथ झा "किरण', बाबू भोला लाल दास, प्रो० हरिमोहन झा आ भुवनजी आर कतेक गोटे मुखर रहथि - मुदा आब से सब की मोन अछि ?

- "मैथिलीमे अपनेक समकालीन कविमे प्रिय कवि ? '

- हमर प्रिय कवि लिखू ... काशीकांत मिश्र 'मधुप', सुरेन्द्र झा 'सुमन', चन्द्रनाथ मिश्र 'अमर' - जँ क्रमके ऊँच-नीचक' देबै तँ क्रम एना राखल जाए - सुरेन्द्र झा 'सुमन', काशीकान्त मिश्र 'मधुप', चन्द्रनाथ मिश्र 'अमर' अर्थात् 'सुमन' जी सबसं प्रिय ।

-'मैथिलीमे अपनेक सबसँ प्रिय कथाकार ?'

-"रमानन्द रेणु'

- से किएक ?

- समाजिक यथार्थक रचनाकार छथि - यथार्थवादी दृष्टिकोम।

- ""आ नाटकमे ?''

- नाटकमे - महेन्द्र मलंगिया - हम हुनकर नाटक देखलिएनि अछि। हुनक प्रतिभासँ हम प्रभावित छी ।

- आ कविता मे ?

- कवितामे कीर्तिनारायण मिश्र आ सुपौलक जनिकर देहान्त भ गेलनि -

- झी रामकृष्ण झा "किसुन'

- "हँ-हँ, किसुन जी हमर प्रिय कवि रहथि। कवि मार्कण्डेय प्रवासीक काव्य-रचना हमरा मुग्ध करैत अछि। एकटा और छथि प्रवासीजी .... प्रवासी साहित्यालंकार आ तहिना आधुनिक कविमे भीमनाथ झा विलक्षण प्रतिभाक कवि छथि। हम हरिमोहन बाबूक रचनासँ आह्मलादित होइत रहलहुँ मुदा।...'

- "मुदा'

- हम हरिमोहन बाबूकें कथाकार नहि मानैत छिएनि। ओ मूलत: व्यंगयकार छथि। कथा हुनक माध्यम छनि व्यंग्यचित्र प्रस्तुत करबाक हेतु। अपन क्षेत्रमे ओ चोटी पर छथि, शिखर पर अत्यंत सफल !

- हिन्दीक आरसी आ मैथिलीक आरसीमे की अन्तर ?

- बड्ड अन्तर - जखन हम मैथिलीमे लिखै छिऐ तँ आपादमस्टक मैथिलीक रहै छिऐ ... दूभि धान, खोईंछ, अहिबातक पातिल आ माय गोसाउनिक कवि रहै छिऐ - शुद्ध मिथिलाम । जेना हमर मैथिलीक पाँती :

बाड़ी बाड़ी लतरल पान

पोखरि पोखरि फुटल मखान।

राह बाटमे गुंजित होइछ

विद्यापतिक मनोरम गान।

गाम गाममे धर्म धुरन्धर

पढ़थि पढ़ाबथि मीन कि मेष

धन्य धन्य ई मिथिला देश

मैथिलीक आरसी विशुद्ध मैथिल छथि। मुदा जखन हम हिन्दीमे लिखै छिऐ तँ पूर बदलि जाइ छिऐ-शब्द मुहावरा, लोच सबमे। हमर दुनू व्यक्तित्व पृथक-पृथक अछि, बिल्कुल अलग।

- "मैथिली मे अपनेक अप्रकाशित कृति ?'

- एकटा तँ गद्य हमर - मैथिली गद्य - विभिन्न भाषण-लेख आदिक संकलन आ एकटा कविताक संकलन-बस, यैह दूटा पुस्तक अप्रकाशित अछि। मोनमे एकटा बातक कचोट रहिए गेल .....

- जी से की ?

- मैथिलीमे महाकाव्य-खण्डकाव्य नहि लिखल भेल। इच्छा रहय ... योजना सेहो। मुदा नहि भ' सकल ! से, तकर कचोट रहि गेल !

- समस्तीपुर जिलान्तर्गत रुसेराघाट स्टेशनसँ आठ किलोमीटर दूर एकटा सुरम्य गाम अछि एरौत । १९ अगस्त १९११ "कृष्णाष्टमी' ब्रह्ममुहूर्त्तमे आरसी बाबूक जन्म भेल रहनि। दिन रहइक शनि। बितैत शुक्रक राति आ शनिक प्रात:काल। सुख, ऐश्वर्य, समृद्धिपूर्ण पारिवारिक वातावरण। गाछी-बिरछी, खेत पथार, चऽर-चाँचर, पोखरि - धार, लालसर चिड़इ आ मुन्ना, रौहु, कबइ, नाना प्रकारक माछ। अन्न-धन लक्ष्मी। पिता रहथिन जमीन्दार, कसमा परगन्ना दरभंगा जिलाक - पुरनका दरभंगा जिला।

- "अपनेक पिताक नाम ?'

- "बाबू दामोदर नारायण सिंह'

- "अपनेक जीविका ?'

- "देखू, प्रारम्भमे कोनो जीविका नहि। जखन हम गाँधीजीसँ प्रभावित भ' टी० एन० जे० कालेजमे पढ़ाइ छोड़ि राष्ट्रसेवाक हेतु अर्पित भेलहुँ तँ मोनमे भेल जे आब चाकरी की ? चाकरी करब तँ गुलामीक बोझ उठब" पड़त। साहित्य साधनामे बाधा होयत। अन्न-पानिसं सुभ्यस्त। जमीन्दारी। तें १९४८ धरि कोनो जीविका नहि। जखन देश स्वतंत्र भेल तँ बिहारक तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह ख्यातिलब्ध हिन्दीक साहित्यकार लोकनिकें प्राध्यापक पद पर नियुक्त कएल। शिवपूजन सहाय छपरामे, रामधारी सिंह "दिनकर" तथा शास्रीजी (जानकीबल्लभ) मुजफ्फरपुरमे, आ हमरा कोशी कालेज खगड़ियामे प्राध्यापकक पद प्राप्त भेल। ई गप्प थिक १९४८ ई० क।

- "जी, तकर बाद ? "

- "तकर बाद एक दिन इस्तीफा द" देलिऐक। मात्र चारि वर्ष कालेजक नौकरीमे रहलिऐ। मोने नही मानय। बड्ड आकुल। कालेजक सहकर्मी प्रोफेसर लोकनि हमर इस्तिपाकें टुकड़ी-टुकड़ी करबाले, व्यग्र। इस्तिफा वापस लियऽ। मुदा हम तँ जे छोड़ि देलिऐ से छोड़ि देलिऐ। तकर बाद एकाध टा आर नौकरी कएल। अन्तत: १९६५ मे लखनउ आकाशवाणी केन्द्रसँ त्याग-पत्र द" सर्वतन्त्र-स्वतंत्र भ" गेलिऐ।"

- "किएक त्यागपत्र देलिऐ ?"

- "एक तँ नौकरीमे मोन नहि लागय, दोसर घऽर पर छोट भाइ अलग भ" गेलाह। खेत-पथार बिलट" लागल। नक्सली उपद्रवक चपेटमे पड़ि गेलहुँ। तें नौकरी छोड़ि देलिऐ आ स्वतंत्र लेखनमे समर्पित भ" गेलहुँ।"

- "अपनेक जन्म जमींदारीक पृष्ठभूमिमे भेल। अपनेक साहित्य पर तकर केहन प्रभाव पड़ल ?"

- "हम बगावत कएलिऐ, विद्रोह। जमींदारी प्रथाक खिलाफमे शंखनाद कएलिऐ। हमर आबाज छैक शोषण, उत्पीड़न, अन्याय आ असमानताक खिलाफ। मानवक गरिमा आ स्वाभिमानक हम कट्टर पक्षधर। व्यवस्था परिवर्त्तनक स्वर लए हम अएलहुँ। हम स्पष्ट शब्दमे लिखने रहिऐक :

 

मैं आज उलट दूँगा जग को, मैं उलट चुका हूँ उसको कल

कंकाल वक्षमे लेकर मैं चलता अंगारों का संबल

- "किछु गोटेक कहब छनि जे साहित्यमे प्रतिबद्धता आवश्यक अछि। अपनेक की विचार?"

आरसी बाबू ठहाका मारिक "हँस" लगलाह, स्थिर होइत कहलनि - "हम एहि तरहक विचारक प्रबल विरोधी छी। कोनो बन्धन नहि - कोनो प्रतिबद्धता नहि। साँझ भेल - आकाश मे चन्द्रमा देखाइ पड़लाह कि हम दउगल चल जाइत रही गाँधी घाट । गंगाक कातमे बैसिक चाँद निहार" । आब तँ अस्वस्थ छी। मुदा एखनो मोन होइत अछि दउगल चल जाइ आ अन्हार रातिमे झिल-मिल ताराकें निहारी !'

-'किछु गोटेक कहब छनि जे भोगल यथार्थ साहित्यक हेतु आवश्यक !'

-"देखू, ई सब विचार थिक वासना मूलक। भोग मूलक । भोग-वासनासँ शरीर अस्वस्थ भ" जाइत छैक आ आत्माक इजोत धूमिल । की हेतैक भोगल यथार्थ सँ ? ई सब किछु साहित्यकार लोकनिक दमित काम-वासनाक विस्फोट मात्र थिक। बूझल किने ! एँ यौ .... तखन कवि की ? कल्पना किएक ? जहाँ न जाय रवि तहाँ जाय कवि ! तिल-तिल नूतन प्रतिभाशाली कवि "भोगल यथार्थ"क फेरामे किएक पड़त ?"

-"अपने वामपंथी छिऐ अथवा दक्षिणपंथी ?

-" हे यौ ! हमरा राजनितिसँ छत्तीसक संबंध । हम राजनीतिकें दूरेसँ गोर लगैत छी। ई सब प्रश्न राजनीतिक कोखसँ बहरायर अछि। ई सब मुद्दा भेल राजनीतिक । तें हमरा एहि सँ की लेना-देना ? एक बे चनावमे ठाढ़ भेलहुँ। डिस्ट्रिक बोर्डक चुनावमे हारि गेलहुँ आ तकर बादसँ आइ धरि राजनीतिक नामो नहि लेल ।'

-'अपने कँ केहन पुरुष नीक लगैत अछि ?'

आरसी बाबू साकांक्ष होइत कहलनि - 'हमरा ?'

-'जी अपनेकें ?'

-'विद्वान, सुर-वीर, हृष्ट-पुष्ट-बलिष्ट ।'

-'भारतीय साहित्यक कोन पुरुष पात्र अपनेकें बेशी आकर्षित करतै अछि ?'

-'अर्जुन निश्चित रुपसँ । अर्जुनमे वीर आ - धीरोदात्त नायकक छवि भेटैत अछि। आ तकर बाद भीष्म पितामह ।'

-'अपनेकें केहन नारी आकर्षित करै अछि ?'

-'शील, लज्जा, कोमलता, ,सुरुचि आ वैदुष्यसँ सम्पन्न । विदुषी नारीसँ हम विशेष रुपँ प्रभावित होइत छी ।'

-'भारतीय साहित्यक कोन नारी पात्र अपनेकें विशेष आकर्षित करैत अछि ?'

-'द्रौपदी ।'

- "से किएक ?"

- -"द्रौपदी मे शील, सौन्दर्य आ तेजस्विता छनि । सीता भारतीय नारीक मर्यादा आ गरिमाक प्रतीक छथि ... तें हम सीताक आराधना करैत छी ।"

- "आ "दिनकर" क उर्वशी सँ ?" 

- "नहि हमरा पर कोनो प्रभाव नहि ।"

- "दिनकर जी" क कामसँ अध्यात्म । अपनेक की प्रतिक्रिया ?" 

आरसी बाबू गंभीर होइत कहलनि - "ई तँं गिटपिट भ"गेल। एकरा हम दिग्भ्रमित चिन्तन मानैत छी। माया मिली न राम। काम तँ काम - राम तँ राम। गोस्वामी जी सेहो कहने छथि - जँह राम तँह काम नहि ।"

- "ई बात अपने अपन अनुभव आधार पर कहैत छी अथवा कल्पासँ ?" 

आरसी बाबू विहुंसैत कहलनि -"ई तँ गिटपिट भ"गेल। एकरा हम दिग्भ्रमित चिन्तन मानैत छी। माया मिली न राम। काम तँ काम-राम तं राम। गोस्वामी जी सेहो कहने छथि - जहँ राम तँह काम नहि।"

-"साइमन द" बुआक नारीवाद आ नारी मुक्ति आन्दोलनक प्रसंग अपनेक प्रसंग अपनेक की कहब ?"

-"हमर स्पष्ट मन्तव्य अछि। नारीकें यातना आ शोषणसँ मुक्तिक हम प्रबल पक्षधर छी। मुदा हम नारीवादक विरोध करैत छी !

-"से किएक ?"

-" नारीवाद पुरुषक खिलाफ, पुरुषक विरोध में आन्दोलन थिक । ई स्वाभाविक प्रवृति नहि भेल । पुरुषक सहभागितामे नारी आन्दोलनक हम समर्थक छी। हम सीताक आदर करैत छी, सूपंनखाक नहि ।"

-"सूपंनखाक विरोध किएक ?"

-"सूपंनखामे उच्छ्ृंखलता छैक, लज्जा आ कोमलताक अभाव छैक, अदम्य वासना छै। जखन जे पुरुष भेटल तखन तकरा लग संभोगक प्रस्ताव क" देलहुँ - हम एहि सूपंनखा संस्कृति घोर विरोधी छी ।"

साँझ डूबल चल जाइत रहैक - चारि सितम्बर १९९५ क साँझ । पटनाक राजेन्द्र नगर मुहल्लाक मुरारी भवनक पछिला हिस्साक एकटा छोटछीन कोठलीमे रुग्ण, एलर्जी आ दम्मासँ पीड़ित महाकवि आरसी प्रसाद सिंह पलंग पर बैसल छथि। आइ कतेक दिनुका बाद साक्षात्कार संभव भ" सकल । आरसी बाबू टेबूल पर राखल एक गिलास पानि पिउलनि आ हमरा दिस साकांक्ष होइत कहलनि - "नारी ईश्वरक सबसँ पैघ कृति -कोमल, लावण्य, सुन्दर - तें हम सूपंनखाक विरोधी छी । सूपंनखामे नारीक कोनो गुण नहि ।"

-"वेश्याक प्रसंग अपनेक की दृष्टिकोण?

-"वेश्याक प्रसंग हमर दृष्टिकोण अत्यंत सहानुभूतिपूर्ण अछि। जा धरि समाजमे परिस्थितिजन्य विवशता रहतैक ता धरि वेश्या गली, कुची आ कोठा पर बैसैत रहत। हमर वैह दृष्टिकोण अछि जे शरत बाबूक छलनि - बंगलाक उपन्यासकार शरतचन्द्र चट्टोपाध्यायक।

-"जी कलकत्ता मे एखन आन्दोलन चलि रहल छैक जे वेश्यावृति कें वैध घोषित कएल जाए।?"

आरसी बाबू चकित होइत कहलनि - "की अपना देशमे वेश्यावृत्ति कानूनक वैध नहि छैक? एकदम गलत। तुरत कानूनन वैध क" देल जयबाक चाही। एहिसं चोरी छिपे अपराध आ दलाली बंद हेतैक। गेनिहार तं मानत नहि - उल्टा रास्तासं जयतै। गर्भपातकें जेना कानूनन वैध घोषित क" देल गेलै तहिना वेश्यावृत्ति क वैध घोषित कएल जयबाक चाही। पहिनहुँ समाजमे वेश्याक स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण छलैक । गणिका कहल जाइत छलैक - आम्रपाली कतेक विख्यात भेल !

-"यदि अपने आज्ञा दी तं अपनेसँ एकटा प्रश्न करी ... व्यक्तिगत !"

-'हँ-हँ, अवश्य-अवश्य'

-'जेना कि हमरा ज्ञात भेल जे अपने लखनउ आकाशवाणीक एकटा महिला कलाकारक प्रेमपाशमे आबद्ध भ' गेल रहिऐ।'

आरसी बाबू विचलित होइत कहलनि ... 'नहि-नहि, ई विशुद्ध भ्रम थिक ... एहन कोनो बात नहि। लखनउ मे हमर अनेक मित्र रहथि - पुरुष आ महिला। अमृत लाल नागर, भगवती चरण वर्मा आ तहिना महिलामे हमर सबसँ निकट रहथि सुमित्रा कुमारी सिन्हा - कवयित्री। सम्बन्ध मधुर छल। मुदा कोनो आन बात नहि, आन संबंध नहि !"

-"प्रख्यात साहित्यकार इलाचन्द जोशीक आरोप छलनि जे आरसी नग्नवाद (न्युडिज्म)क समर्थक कवि छथि। अपनेक की प्रतिक्रिया ?"

-" इला चन्द जोशी एक लेखमे हमरा पर ई आरोप अवश्य लगौने रहथि" तकर कारण ई भेलैक जे हमर कविता मे नारीक र्तृदर्यक उन्मुक्त वर्णन अछि। हम अपन एक कवितामे लिखने रहिऐक :

यौवन मदिरा की विकट गंध

कर रही मुझे पल-पल अधीर

 

अतएव हम आगाँ लिखलिऐ :

 

रह जाय न लेश भी वसन-शेष

उर, भुज कपोल, शिर जगनदेश।

हो मूर्कित्तमती मेरे समक्ष

अवधारण कर दू नग्न वेश।

नारीक संपूर्ण नग्न आकृति आ यौवन मदिराक विकट उन्मादक गंध हम जे लिखलिऐ से संपूर्ण रसमे डूविक लिखलिऐ आ तें लिखलिए

मत हो लज्जा सर मे निमग्न

कर दे कुच-नीवी-ग्रंथि-भग्ना

आ जा, ओ, आ मेरे समीप,

संपूर्ण नग्न, एकांत नग्न।

एहि रुपें हम संपूर्ण नग्न, एकान्त नग्नक चित्र प्रस्तुत कएलिऐ - कविताकें चरम उन्मादक यथार्थ पर ल' गेलिऐ। असलमे हम कविताक प्रेरणा प्रकृतिसँ ग्रहण करैत छी। आ प्रकृति छथि नग्न, झाँपल नहि, वृक्ष, लता, कली, कोपड़ फूल सब नग्न-कालिदास आ विद्यापतिक कवितामे सेहो एहन यथार्थ भेटत। तें सौंदर्यक ई स्वाभाविक वर्णन थिक-कोनो नग्नवादक समर्थन नहि।'

आधुनिक भारतक महान सन्त रामकृष्ण परमहंसक शिष्य स्वामी विवेकानन्दक ओजस्वी वयक्तित्व एवं वाणीसँ प्रभावित आरसी बाबू चरैवेति- चरैवेतिकें अपन जीवन दर्शन मानैत छथि। आरसी बाबूक अनुसार भारतक वाणी वेदान्तकें स्वामी विवेकानन्द नव स्वर देलनि। शंकराचार्यक बाद वेदान्तक स्वर लुप्त भ' गेल रहय, दबि गेल रहय। संपूर्ण विश्वमे विवेकानन्द भारतक मनीषाकें ज्वलित कएलिन। भारतकें जगौलीन। हमर जागरण भेल। हम के छी? कहाँ छी? तकर परिचय भेटल।

पटनायक राजेन्द्र नगर मुहल्लाक मुरारी भवनक पिछला हिस्साक छोटछीन कोठलीमे खिड़की द' गेल छैक। आरसी बाबू हमरा दिस उन्मुख होइत पुछलनि - 'की चाह चलत?'

- ' जी, नहि मात्र एक गिलास पानि'-

आरसी बाबू बैसले-बैसल बाक देलनि - 'विन्दू! विन्दु!! एक गिलास पानि। पानि अबैत अछि भरल गिलास। हम उठाक' पीबि जाइत छी। तँ ने बड़ पियास लागत छल।' हम साकांक्ष होइत पुछैत छियनि - अपने लिखने रहिऐक :

कालकूटमे कमल फूल सम जीवन भासल जाय

रस समुद्रमे यद्यपि डूबल प्राण पियासल जाय

आरसी बाबू अभिमुख होइत कहलनि - 'हँ-हँ लिखने छलिऐक। हम रहिऐक!'

- 'तँ की आब अपनेक पियास खतम भेल - तृप्त भेलिऐक?'

आरसी बाबू निर्द्वेन्द्व निर्विकार भावे कहलनि - 'नहि पियास ओहिना अछि। युग-युग-सँ पियासल छी। अखनहुँ प्राण पियासल अछि।'

- 'कथीक पियास?'

- देखू, एकटा तँ पियास भेल ब्रह्मानन्द रस - रसोहैसः आ दोसर पियास भेल दुनियावी- भोगविलासमे रस, पदलिप्सामे रस, कंचन कायामे रस- ई पियास बड़ मारुक- ययाति अतृप्त रहलाह। आगिमे जतेक घी देबैक ततेक हबकतैक। तें पियासक अन्त नहि।'

- 'अपने तंत्रकें मानैत छिऐक?'

- 'हँ हँ हमरा तंत्रमे पूर्ण विश्वास अछि। मुद्रा तंत्रक ज्ञान छैक गुप्त। गुरु मिलनाइ कठिन। पंचमकार - मत्स्य, मांस, मदिरा, मुद्रा आ मैछुनक साधना थिक तंत्र। बिनु गुरु खतरा छै। तें हम तंत्रक गहराइमे नहि जाइ छी। तंत्र थिक दीपक - दीपसँ प्रकाशो होइत छै आ आगि सेहो लगा सकै छै।' भावपूर्ण मुद्रामे कुलदेवीकें नमन करैत आरसी बाबू कहलनि - 'हम आदिशक्ति, आदिजननी माँ जगदम्बाकें नमन करैत छी।'

- 'अपनेकें जीवनमे सबसँ अधिक खुशी कहिया भेटल?'

प्रश्न सुनिक' आरसी बाबू निमिष मात्रक हेतु समाधिस्थ भ' गेलाह। पीठक आँखिसँ अपन संपूर्ण अतीतकें देखलनि, तखन मुस्कुराइत बजलाह - 'हमरा सबसँ अधिक खुशीक बोध ओहि दिन भेल दहिया ई अनुभव भेल जे हम कवि भ' गेल छी। कविता क' सकै छी, द्रष्टा छी, हम श्रष्टा छी - कवि: मनीषी परिभू: स्वयमभःू।

- 'ई उत्तर कवि आरसीक अथवा व्यक्ति आरसीक?'

हमर प्रश्न सुनिक' आरसी बाबूक मुखाकृति क्लान्त भ' उठलनि, आकुल, कहलनि - व्यक्ति आरसीकें कहियो कोनो खुशी नहि, झंझटिएमे रहलाह, ने परिवारमे, ने कालेजमे, ने रेडियोमे, ने पढ़ाइ-लिखाइमे- व्यक्ति आरसी व्याकुल आ अवसत्र रहलाह।'

- 'अपनेक जीवनक सबसँ पैध उपलब्धि?'

- 'स्वाभिमानक रक्षा। हम टुटि सकै छी मुदा झुकि नहि सकै छी। हम त्यागपत्र दैत रहलहुँ मुदा समझौता नहि कएलहुँ।'

- 'कोनो इच्छा? जकर पूर्ति नहि भेल हो।'

- 'सब इच्छाक पूर्ति-कोइ इच्छा नहि-कोनो इच्छा नहि। मुदा एकटा बातक दुख।

- जी, से की?'

- 'अपन मकान नहि भ' सकल। लखनऊ, इलाहाबाद, पटना, मुजफ्फरपुर- कोन गली, कोन चौराहा नहि घुमलहुँ - कोना शहरमे अपन मकान नहि भ' सकल। आब अनकर मकानमे रहैत असौकर्य होइत अछि- मुदा तकर कएले की जाय? तकर बाद किछु कालधरि देशक वर्त्तमान परिस्थिति पर चर्चा होबए लागल। लोकतंत्र, चुनाव, आतंकवाद। हम साकांक्ष होइत पुछलियनि - 'देशक भविष्य?'

आरसी बाबू साकांक्ष होइत कहलनि- 'देशक भविष्य बहुत उज्जवल। बीच-बीचमं संकटसँ गुजरतै अपन देश। अंततः उज्जवल भविष्य दिस अपन देश जा रहल छै। पाकिस्तान अस्तित्व पर संकट छै। पाकिस्तान खतम भ' जयतै। आतंकवादी गतिविधि सँ पाकिस्तान नहि हटल त ध्वस्त भ' जयतै।'

- 'अपने सम्प्रति अपन सिरमामे कोन पुस्तक रखैत छिएंक?'

- 'मूलत रामचरित, योगवाशिष्ट्य, शंकराचार्यक विवेकचूड़ामणि आ आब गीता। साहित्यसँ अध्यात्म दिस प्रयाण भ' रहल अछि।'

- 'अपनेक जीवनक कोनो रहस्य?'

मत हो लज्जा सर मे निमग्न

कर दे कुच-नीवी-ग्रंथि-भग्ना

आ जा, ओ, आ मेरे समीप,

संपूर्ण नग्न, एकांत नग्न।

एहि रुपें हम संपूर्ण नग्न, एकान्त नग्नक चित्र प्रस्तुत कएलिऐ - कविताकें चरम उन्मादक यथार्थ पर ल' गेलिऐ। असलमे हम कविताक प्रेरणा प्रकृतिसँ ग्रहण करैत छी। आ प्रकृति छथि नग्न, झाँपल नहि, वृक्ष, लता, कली, कोपड़ फूल सब नग्न-कालिदास आ विद्यापतिक कवितामे सेहो एहन यथार्थ भेटत। तें सौंदर्यक ई स्वाभाविक वर्णन थिक-कोनो नग्नवादक समर्थन नहि।'

आधुनिक भारतक महान सन्त रामकृष्ण परमहंसक शिष्य स्वामी विवेकानन्दक ओजस्वी वयक्तित्व एवं वाणीसँ प्रभावित आरसी बाबू चरैवेति- चरैवेतिकें अपन जीवन दर्शन मानैत छथि। आरसी बाबूक अनुसार भारतक वाणी वेदान्तकें स्वामी विवेकानन्द नव स्वर देलनि। शंकराचार्यक बाद वेदान्तक स्वर लुप्त भ' गेल रहय, दबि गेल रहय। संपूर्ण विश्वमे विवेकानन्द भारतक मनीषाकें ज्वलित कएलिन। भारतकें जगौलीन। हमर जागरण भेल। हम के छी? कहाँ छी? तकर परिचय भेटल।

पटनायक राजेन्द्र नगर मुहल्लाक मुरारी भवनक पिछला हिस्साक छोटछीन कोठलीमे खिड़की द' गेल छैक। आरसी बाबू हमरा दिस उन्मुख होइत पुछलनि - 'की चाह चलत?'

- ' जी, नहि मात्र एक गिलास पानि'-

आरसी बाबू बैसले-बैसल बाक देलनि - 'विन्दू! विन्दु!! एक गिलास पानि। पानि अबैत अछि भरल गिलास। हम उठाक' पीबि जाइत छी। तँ ने बड़ पियास लागत छल।' हम साकांक्ष होइत पुछैत छियनि - अपने लिखने रहिऐक :

कालकूटमे कमल फूल सम जीवन भासल जाय

रस समुद्रमे यद्यपि डूबल प्राण पियासल जाय

आरसी बाबू अभिमुख होइत कहलनि - 'हँ-हँ लिखने छलिऐक। हम रहिऐक!'

-'तँ की आब अपनेक पियास खतम भेल - तृप्त भेलिऐक?'

आरसी बाबू निर्द्वेन्द्व निर्विकार भावे कहलनि - 'नहि पियास ओहिना अछि। युग-युग-सँ पियासल छी। अखनहुँ प्राण पियासल अछि।'

-'कथीक पियास?'

-देखू, एकटा तँ पियास भेल ब्रह्मानन्द रस - रसोहैसः आ दोसर पियास भेल दुनियावी- भोगविलासमे रस, पदलिप्सामे रस, कंचन कायामे रस- ई पियास बड़ मारुक- ययाति अतृप्त रहलाह। आगिमे जतेक घी देबैक ततेक हबकतैक। तें पियासक अन्त नहि।'

-'अपने तंत्रकें मानैत छिऐक?'

-'हँ हँ हमरा तंत्रमे पूर्ण विश्वास अछि। मुद्रा तंत्रक ज्ञान छैक गुप्त। गुरु मिलनाइ कठिन। पंचमकार - मत्स्य, मांस, मदिरा, मुद्रा आ मैछुनक साधना थिक तंत्र। बिनु गुरु खतरा छै। तें हम तंत्रक गहराइमे नहि जाइ छी। तंत्र थिक दीपक - दीपसँ प्रकाशो होइत छै आ आगि सेहो लगा सकै छै।' भावपूर्ण मुद्रामे कुलदेवीकें नमन करैत आरसी बाबू कहलनि - 'हम आदिशक्ति, आदिजननी माँ जगदम्बाकें नमन करैत छी।'

-'अपनेकें जीवनमे सबसँ अधिक खुशी कहिया भेटल?'

प्रश्न सुनिक' आरसी बाबू निमिष मात्रक हेतु समाधिस्थ भ' गेलाह। पीठक आँखिसँ अपन संपूर्ण अतीतकें देखलनि, तखन मुस्कुराइत बजलाह - 'हमरा सबसँ अधिक खुशीक बोध ओहि दिन भेल दहिया ई अनुभव भेल जे हम कवि भ' गेल छी। कविता क' सकै छी, द्रष्टा छी, हम श्रष्टा छी - कवि: मनीषी परिभू: स्वयमभःू।

-'ई उत्तर कवि आरसीक अथवा व्यक्ति आरसीक?'

हमर प्रश्न सुनिक' आरसी बाबूक मुखाकृति क्लान्त भ' उठलनि, आकुल, कहलनि - व्यक्ति आरसीकें कहियो कोनो खुशी नहि, झंझटिएमे रहलाह, ने परिवारमे, ने कालेजमे, ने रेडियोमे, ने पढ़ाइ-लिखाइमे- व्यक्ति आरसी व्याकुल आ अवसत्र रहलाह।'

-'अपनेक जीवनक सबसँ पैध उपलब्धि?'

-'स्वाभिमानक रक्षा। हम टुटि सकै छी मुदा झुकि नहि सकै छी। हम त्यागपत्र दैत रहलहुँ मुदा समझौता नहि कएलहुँ।'

-'कोनो इच्छा? जकर पूर्ति नहि भेल हो।'

-'सब इच्छाक पूर्ति-कोइ इच्छा नहि-कोनो इच्छा नहि। मुदा एकटा बातक दुख।

-जी, से की?'

-'अपन मकान नहि भ' सकल। लखनऊ, इलाहाबाद, पटना, मुजफ्फरपुर- कोन गली, कोन चौराहा नहि घुमलहुँ - कोना शहरमे अपन मकान नहि भ' सकल। आब अनकर मकानमे रहैत असौकर्य होइत अछि- मुदा तकर कएले की जाय? तकर बाद किछु कालधरि देशक वर्त्तमान परिस्थिति पर चर्चा होबए लागल। लोकतंत्र, चुनाव, आतंकवाद। हम साकांक्ष होइत पुछलियनि - 'देशक भविष्य?'

आरसी बाबू साकांक्ष होइत कहलनि- 'देशक भविष्य बहुत उज्जवल। बीच-बीचमं संकटसँ गुजरतै अपन देश। अंततः उज्जवल भविष्य दिस अपन देश जा रहल छै। पाकिस्तान अस्तित्व पर संकट छै। पाकिस्तान खतम भ' जयतै। आतंकवादी गतिविधि सँ पाकिस्तान नहि हटल त ध्वस्त भ' जयतै।'

-'अपने सम्प्रति अपन सिरमामे कोन पुस्तक रखैत छिएंक?'

-'मूलत रामचरित, योगवाशिष्ट्य, शंकराचार्यक विवेकचूड़ामणि आ आब गीता। साहित्यसँ अध्यात्म दिस प्रयाण भ' रहल अछि।'

- 'अपनेक जीवनक कोनो रहस्य?'

' हँ औ । एकटा अछि ।'

' जी, से की?'

' ओना तँ यदा-कदा स्वप्नमें देखल करैत छी जे हम मंच पर काव्य-पाठ क' रहल छी, कविताक रचना क'रहल छी। पाँतीक पाँती कविता लिखा गेल स्वप्न में-हड़बड़ाक' उठलहुँ मुदा सबटा विस्मरण-निन्द टुटल कि सबटा बिसरि गेलिए..... मुदा एक बेर हम स्वप्नमें जेना-जेना कविताक रचना कएलिऐ से सबटा मोन रहि गेल - जगलो पर मोने रहलै - हिन्दीक खण्डकाव्य-आरण्यक। मात्र हम ओकरा विस्तार देलिऐ। लोककें कहबै तँ लोक मानत नहि, मुदा बात थिक सत्ये।'

' अपनेक नशा?'

आरसी बाबूके आँखिक कोर लाल भ' उठलनि, बजलाह- भाँग खूब पिबैत रहिऐक- गाममे रहला पर साँक्षमें भाँगक सेवन करिऐक। आ सिगरेट- धूम्रपान-चेन-स्मोकर। आब तकर भोग भोगि रहल छी। साँसक बीमारी- दम्मा एलर्जी। डाँ० मोदी कहलनि - चाय चल सकती है, चिनी मत डालिए - से, आब कउखन क' चाय पीबिलैत छी आ चिनीक नामपर एकटा दवाइनुमा टेबलेट चाहक कपमें खसा दै छिऐ - बस यैह नशा अछि और किछु नहि।'

आरसी बाबू बिजलीक एकटा स्वीच दबा दै छथिन। संपूर्ण कोठली मर्करी ट्यूब लाइटक दुधिया प्रकाशमे नहा उठैत अछि।

' अपनेक जीवनक सन्तुलन विन्दु की थिक।'

आरसी बाबू उल्लसित होइत कहलिन - ' कविता - कविता हमर संतुलन विन्दु थिक। जेना शास्रीय संगीतमे सम पर आबिक' साज-बाज सब एकाकार भ' जाईत छैक' तहिना कवितामे हमर जीवन-हर्ष-उल्लास, दुविधा द्वन्द्व सभक समारोप भ' जाईत छैक। हम कहानी, निबन्ध, जीवनी, संस्मरण सब लिखलहुँ मुदा फेर लौटिक' कविता पर चल अएलहुँ। हम गामसँ चललहुँ आ कविता पर पहुँचलहुँ, हम कालेज सँ चललहुँ आ कविता पर पहुँचलहुँ, हम रेडियो सँ चललहुँ आ कविता पर पहुँचलहुँ, हम परिवार सँ चललहुँ आ कविता पर पहुँचलहुँ - हम कविता ले' सब छोड़ि देलहुँ.... सब किछु छोड़ि देलहुँ - एके साधे सब सधै - हमरा ले' कविता थिक श्रेय हमरा ले' कविता थिक प्रेय- तें कहलहुँ हमर जीवनक, यौवनक उल्लासक संघर्षक संतुलन विन्दु छै कविता- हमरा ले' कविता पारो आ हम कविता ले' छिऐ देवदास।'

से, तकर बाद हम ओहि मुनहारि साँक्षमे महाप्राण कविकें नमन करैत मुरारी भवनक पछिला हिस्साक कोठलीसँ निकलिन' पटनाक जन-अरण्यमे विलीन भ' गेल रही चक्कर खाइत, गोलाम्बर कें पार करैत, उभड़-खाभड़ सड़ककैं टपैत, चलैत-चलैत-

चलना है, केवल चलना है जीवन चलता ही रहता है।

मर जाना है, रुक जाना ही निर्झर यह झर कर कहता है।

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© Copyright आशुतोष कुमार, राहुल रंजन   2001

प्रकाशक : मैथिली रचना मंच, सोमनाथ निकेतन, शुभंकरपुर, दरभंगा (बिहार) - ८४६ ००६), दूरभाष २३००३

मुद्रक : प्रिंटवेल, टावर चौक, दरभंगा - ८४६ ००४, दूरभाष ३५२०५

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